फिल्म समीक्षा – तूफान
सितारे – परेश रावल, फरहान अख्तर. मृणाल ठाकुर, मोहन अगाशे, विजय राज आदि।
निर्देशक – राकेश ओमप्रकाश मेहरा, OTT – अमेजॉन प्राइम वीडियो
फरहान अख्तर की तूफान वास्तव में एक तूफानी इरादे वाली फिल्म है। इसमें फिल्ममेकर ने कुछ बड़ी गलतफहमियां दूर करने की कोशिश की है। उसे विंदुवार तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।
1. मुस्लिम नायक
पहली गलतफहमी यह कि फिल्म का नायक अगर मुस्लिम हो तो शायद आज के जमाने में फिल्म को लोग कम देखने आएं। लेकिन डायरेक्टर राकेश ओमप्रकाश मेहरा और राइटर अंजुम राजाबली – विजय मौर्य की जोड़ी ने इस मिथ को साहसिकता और सूझबूझ के साथ तोड़ा है। क्योंकि आज की तारीख में सिनेमा के पर्दे पर खलनायक अगर मुस्लिम हो तो फिल्म के हिट होने की संभावना बढ़ जाती है लेकिन यहां स्थिति उलट है। फिल्ममेकर ने जोखिम उठाते हुये नायक को ही मुस्लिम बना दिया है। हीरो फरहान अख्तर असली जिंदगी में मुसलमान तो हैं ही, पर्दे पर अजीज अली के रूप में भी मुस्लिम हैं। डायरेक्टर-राइटर चाहते तो अजीज को भी प्रेम, राज, राहुल या करण बनाकर पेश कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
2. बॉक्सर का धर्म !
फरहान अख्तर की तूफान की कहानी जिस तरीके से आगे बढ़ती है उस प्रवाह में लोग भूल जाते हैं कि इस बॉक्सर का आखिर मजहब क्या है? उसके गुरू नाना प्रभु यानी परेश रावल से फिल्म में एक जगह धार्मिक मसलों पर विवाद के बीच मोगन अगाशे कहते हैं – बतौर बॉक्सर उसका धर्म तो बॉक्सिंग हुआ न!
3. गुंडा बना बॉक्सर
फिल्म में दूसरी बड़ी पॉजीटिविटी एक गली छाप गुंडे का विजेता बॉक्सर बन जाना है। इन दिनों कई सारे विजेता बॉक्सर या रेसलर के गैंगस्टर बनने की बहुत सारी कहानियां हमने देखी-सुनी हैं लेकिन यहां एक गली छाप गुंडा और वसूली करने वाला बदमाश एक सफल बॉक्सर बन जाता है। उससे लाइसेंस देने से पहले शपथ दिलाई जाती है कि वह किसी गैर-कानूनी गतिविधियों में बॉक्सर की ताकत की आजमाइश नहीं करेगा। यानी इस विंदु पर भी इस कहानी का किरदार निगेटिविटी से पॉजीटिविटी की ओर जाता है।
4. लव जेहाद की गलतफहमी
फिल्म में तीसरी बड़ी गलतफहमी दूर करने की कोशिश की गई है लव जेहाद जैसे निरर्थक शब्द को लेकर। वास्तव में यह एक मीनिंगलेस शब्द है। फिल्म में अजीज अली के गुरु को जब यह पता चलता है कि वह उसकी बेटी डॉक्टर अनन्या यानी मृणाल ठाकुर से प्रेम करता है तो वह आग बबूला हो जाता है। और मसला दो मजहबों का बन आता है। क्योंकि नाना प्रमु की पत्नी मुंबई ब्लास्ट में मारी गई हैं और इसकी वजह से उसके भीतर मुसलमानों के लिए नफरत की भावना भरी हुई है। और यही वजह है कि इस बात को बर्दाश्त नहीं करना चाहते कि उसकी बेटी किसी मुस्लिम से प्रेम करे। यहां पर वह बॉक्सर अजीज अली को भला बुरा कहते हैं, गालियां देते हैं, थप्पड़ मारते हैं और यह आरोप लगाते हैं कि उसने उसकी बेटी को फंसाया है। जिसके बाद अजीज अली डॉ. अनन्या के सामने आता है तो गुस्सा करता है कि उस पर उसके पिता ने उसे फंसाने का आरोप लगाया है। जबकि अनन्या पहले से जानती थी कि वह उसके पिता के पास बॉक्सिंग सीखने जाता है लेकिन इस बात को उससे छुपा लेती है वह उनकी बेटी है।
5. फरहान की आवाज़
फिल्म के कलाकारों के अभियन की बात करें तो मुझे फरहान की एक्टिंग और प्रतिभा से कभी कोई निराशा नहीं रही सिवाय उनकी आवाज़ की क्वालिटी और डायलॉग डिलीवरी के। फिल्म के एक प्रमुख नायक की आवाज़ और अंदाजे बयां में आकर्षण होना ही चाहिये-लेकिन इस मोर्चे पर कुछ टिप्पणी इसलिये नहीं की जा सकती क्योंकि आवाज तो प्रकृति की देन होती है। लेकिन एक्टिंग और किरदार को सहजता से जीने के लिए की गई उनकी मेहनत हमेशा से काबिलेतारीफ रही है।
6. बॉक्सर वाला एटीट्यूट
भाग मिल्खा भाग की तरह यहां भी उन्होंने वास्तविक मुक्केबाज मोहम्मद अली के फैन अजीज अली बनने की पूरी कोशिश की है। एक बॉक्सर वाला चाल-ढाल, बॉडी लेंग्वेज और एटीट्यूट को उन्होंने आत्मसात किया है। चैरिटेबल क्लिनिक की डॉक्टर अनन्या के तौर पर मृणाल ठाकुर में भरपूर स्क्रीनप्रियता है वह एक सोशल वर्कर की भांति सोच रखने वाली युवती दिखी हैं। वह स्क्रीन पर बॉलीवुड के ताजे फूल की तरह नजर आती है।
7. परेश रावल का पंच
लेकिन बॉक्सिंग गुरु नाना प्रभु बने परेश रावल यहां सब पर भारी पड़े हैं। फिल्म में उनका एक डायलॉग है – बॉक्सिंग का पहला पाठ डिफेंड करना है, यकीनन पूरी फिल्म में फरहान भले ही तूफानी बॉक्सिंग करते नजर आए लेकिन समूची फिल्म को डिफेंड करने में उन्होंने सबसे शानदार पंच लगाये हैं। जावेद अख्तर के गीत और शंकर-एहसान-लॉय के संगीत में कहानी के बैकड्रॉप के अनुरूप नई ताजगी है।
8. फिल्म की कमजोर कड़ियां।
तूफान की सबसे बड़ी कमजोरी इसमें दो कहानी का मिस्चर हो जाना है और लोकप्रिय मसाला मसलों का शिकार बन जाता है। ना तो यह पूरी तरह से एक बॉक्सर की कहानी बन पाती है और ना ही एक प्रेम कहानी। फिल्म की कहानी दोनों तरफ झूलती रहती है इसलिए तूफान कहीं कहीं कमजोर पड़ जाता है तो कहीं कहीं अपनी दिशा भी बदलता हुआ दिखाई देता है।
आखिर अजीज अली किन परिस्थितियों में गली का गुंडा बन जाता है और जिन वजहों से वह बॉक्सर बनने के बाद पैसे लेकर हार जाता है-उन हालात को फिल्म मेकर को थोड़ा और खोलना चाहिये। अनन्या का मैजिकल तरीके से निधन होना थोड़ा खलता है। शायद कहानीकार नाना प्रभु के भीतर पीड़ा को और घनीभूत करना चाहते रहें हों या कहानी को थोड़ा और भावुक बनाना चाहते हों।
लेकिन इन मामूली कमियों के बावजूद फिल्म की डायरेक्टर और राइटर टीम की साहकिता की जरूर तारीफ जानी चाहिये।
2.5 स्टार।
-संजीव श्रीवास्तव
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