नई दिल्ली, 14 सितंबर। हिंदी दिवस के अवसर पर हिन्दीः मानकीकरण, लेखन और पठन विषय पर उत्थान फाउंडेशन के तत्वाधान में जूम मीट पर अरूणा घवाना ने अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया। इसमें भारत समेत विभिन्न देशों के वक्ताओं ने एक स्वर में हिन्दी को उसके शीर्ष पर पहुंचाने के लिए राजनैतिक व व्यक्तिगत दोनों स्तर पर ईमानदार प्रयास की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम संचालिका अरूणा घवाना ने अपने वक्तव्य में कहा कि भिन्न-भिन्न देशों में हिन्दी का अलग-अलग स्वरूप उसकी व्यापकता का ही द्योतक है। फिजी, सूरीनाम, मारीशस जैसे देशों में चौथी पीढ़ी भी हिन्दी बोलती है।
वेबिनार के पहले सत्र में वक्ता वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने शब्दावली के मानकीकरण पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम जब भी कोई लेख या रचना लिखें तो इस बात का जरूर ध्यान रखें कि विषय विशेष की शब्दावली का ही इस्तेमाल करें। भारत सरकार द्वारा मानकीकृत शब्दों को बढ़ावा देकर ही हिन्दी को समृध्द बनाया जा सकता है और सरकार के प्रतासों को सफल।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. बिजेन्द्र कुमार ने हिन्दी की यात्रा को अभी लंबा बताया और समानांतर चलती अंग्रेजी भाषा को रोजगार पाने वाली भाषा माना है, जो चिंता का विषय जरूर है। साथ ही मानकीकरण को महत्वपूर्ण प्रक्रिया माना।
दूसरे सत्र में वेबिनार के मुख्य अतिथि इंडो स्कैंडिक संस्थान, स्वीडन के उपाध्यक्ष सुरेश पांडेय ने हिन्दी की महत्ता को बताते हुए काव्य पाठ कर हिन्दी के प्रति अपने समर्पित प्रेम का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि भाषा अपने साथ संस्कृति को भी लेकर चलती है। हिन्दी भाषा को एक समृद्ध भाषा बताया।
इसी सत्र में यूके से शैल अग्रवाल और लखनऊ से पूर्णिमा वर्मन ने भाग लिया।
वेबिनार की अतिथि वक्ता शैल अग्रवाल ने बताया कि स्वयं के लिए लिखना स्व तुष्टि है, और जब हम इस लेखन को व्यापकता देते हैं तो संभवतः भाषा को उन्नत और समृद्ध करने में मदद करते हैं। और हिन्दी पर गर्व कर हम खुद को गौरवान्वित करते हैं।
पूर्णिमा ने माना कि हर देश की अपनी समस्या है और किसी एक देश की समस्या को दूसरे देश के परिवेश में रखकर न समझा जा सकता है और न ऐसा करना किसी स्तर पर उचित है। उन्हें इस बात का अफसोस है कि प्रवासियों की रचनाओं का मूल्यांकन सही नहीं हो पा रहा।
तीसरे सत्र में यूएसए से सीता और यूएई से विदिशा और मंजू कुमार ने भाग लिया। यूएसए में पेशे से वैज्ञानिक सीता ने “पुष्प की अभिलाषा” कविता सुना कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। मंजू ने बताया कि भारत से बाहर रहकर हिन्दी को सुनना एक सुखद अनुभव है। वहां लोग हिन्दी समझते हैं। वह अपने घर में भी बच्चों को हिन्दी सिखाने पर जोर देती हैं। विदिशा ने बताया कि बच्चों को दो भाषाओं के बीच त्रिशंकु बनाने से बेहतर है कि अभिभावक स्वयं अपने मस्तिष्क में स्पष्ट करें कि उन्हें बच्चों से बात करनी है या वार्तालाप। परिवार में वार्तालाप की भाषा क्या होनी चाहिए, यह स्पष्ट हो तो सुखद रहता है। इस वेबिनार के माध्यम से सभी ने हिन्दी के प्रति अपना सम्मान और स्नेह प्रकट किया और विश्वास व्यक्त किया कि हिन्दी जरूर सर्वोपरि होगी। हिंदी यूनिवर्स फ़ाउंडेशन नीदरर्लैंड की निदेशिका प्रो पुष्पिता अवस्थी निजी कारणों से इस वेबिनार में भाग नहीं ले पाईं।
हिंदी दिवस पर अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में छह देशों के वक्ता लेंगे भाग