‘हिन्दी के लिए समर्पण भाव जरूरी’

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नई दिल्ली, 10 जनवरी। द्वारका स्थित उत्थान फाउंडेशन के तत्वावधान में विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। आयोजन के सह-आयोजक तरूण घवाना ने बताया जूम मीट पर आयोजित हुए इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में प्रवासी भारतीयों के अलावा विदेशी मेहमानों ने भी भाग लिया।
उत्थान फाउंडेशन की निदेशिका व वेबिनार की संचालिका अरूणा घवाना ने अपने वक्तव्य में कहा कि अंग्रेजी के सफर के साथ ही भारतीयों ने सुदूर देशों और द्वीपों में हिन्दी का सफर तय किया। किंतु जब तक हिन्दी यूएन में आधिकारिक तौर पर स्वीकृत नहीं होती, हमें प्रयासरत रहना चाहिए।


विश्व हिन्दी दिवस पर आयोजित वेबिनार के अध्यक्ष प्रसिद्ध भाषाविद् और राष्ट्रपति द्वारा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए राहुल सांकृत्यायन सम्मान से सम्मानित डॉ विमलेशकांति वर्मा ने कहा कि हिन्दी तो सार्वभौमिक हो रही है, बस उसे बांधने का प्रयास न करें। अतिथि वक्ता ताशकंद सरकारी प्राच्य विद्या संस्थान की प्रोफेसर और महात्मा गांधी भारत विद्या केंद्र की निदेशक प्रो. उल्फत मुखीबोवा ने कहा कि भारत को जानने के लिए हिन्दी साहित्य जानना जरूरी है। साथ ही हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बॉलीवुड के गानों और फिल्मों के योगदान का भी जिक्र किया।
यूके से साहित्यकार एवं ईपत्रिका लेखनी की संपादिका शैल अग्रवाल ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत की बढ़ती साख के साथ यकीनन हिन्दी की साख भी बढ़ेगी। कनाडा की ‘वसुधा’ पत्रिका की संपादिका डॉ. स्नेह ठाकुर ने हिन्दी के प्रति लोगों के रवैए पर दुख व्यक्त किया।
नीदरलैंडस से भाषा विज्ञानी प्रो मोहनकांत गौतम ने कहा कि भारतीय या भारतवंशी ही हिन्दी के भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। यहीं से हिन्दी शिक्षिका कृष्णकुमारी ने अपनी काव्यात्मक प्रस्तुति दी।

स्वीडन से इंडो-स्कैंडिक संस्थान के उपाध्यक्ष सुरेश पांडे, पोलैंड से डॉ संतोष तिवारी, केन्या से मिसेज इंडिया केन्या 2021-2022, रूही सिंह ने अपनी काव्यात्मक प्रस्तुति से समा बांध दिया। सूरीनाम से हिन्दी शिक्षिका लैला लालाराम और त्रिनिडाड-टुबैगो से भारतीय संस्कार और संस्कृति की सेवा में जुटी रुकमिणी होल्लास ने हिन्दी में कविताओं के माध्यम से भारत दर्शन कराया।
न्यूजीलैंड से मैसी यूनिवर्सिटी की निदेशक डॉ पुष्पा भारद्वाज वुड ने कहा कि भारत में लोग अंग्रेजी ही सीखना चाहते हैं ताकि अच्छी नौकरी मिल सकें जो एक दुःखद बात है। वहीं आस्ट्रेलिया से हिन्दी शिक्षिका श्रद्धा दास ने गिरमिट लोक गीतों को स्वर दिया।
चीन के क्वान्ग्तोंग विश्वविद्यालय से जुड़े डॉ विवेक त्रिपाठी ने कहा कि भारत और चीन का संबंध पुराना है। संस्कार ही संस्कृति लेकर चलते हैं। साथ ही बताया कि चीनी हिन्दी अनुवाद हिन्दी की व्यापकता की एक और कड़ी है।

‘प्रवासी साहित्य’ विस्थापन का ‘साहित्य’

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