भावनाओं में बहकर कभी कभी मनुष्य अपनी छोटी छोटी इच्छाओं को भी अनदेखा कर देता है और एक उम्र के बाद अहसास होता है कि “काश! अपने मन की सुननी चाहिए थी”।
प्रो. (डॉ) सरोज व्यास
(लेखिका-शिक्षाविद्)
निदेशक, फेयरफील्ड प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थान,
(गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय), नई दिल्ली