- त्रिवेंद्र सरकार के काले फैसले डुबो देंगे धामी की नाव
- एक देश, एक चुनाव का पुरजोर विरोध करे जनता
यदि यूपी, उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा को अपनी हार का खतरा नहीं दिखता तो मोदी सरकार कभी भी तीन कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती। मीडिया पर अरबों रुपये बहाने के बावजूद यूपी और उत्तराखंड में भाजपा का पत्ता साफ होने के आसार हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार सात मंत्री चुनाव हार रहे हैं। इसके अलावा 24 सिटिंग विधायकों को यदि दोबारा टिकट मिलता है तो वो भी हार जाएंगे।
खैर, बात अब त्रिवेंद्र चचा के दो काले फैसलों की। देवस्थानम बोर्ड को तुरंत भंग नहीं किया तो भाजपा की नैया पूरी तरह से डूब जाएगी। इसके अलावा भू-कानून का पेच भी धामी सरकार के सारे जुमलों पर भारी पड़ेगा। धामी सरकार ने पिछले चार महीनों में 500 से भी अधिक लोक-लुभावनी घोषणाएं की हैं लेकिन सभी फैसलों को कमेटी में लटका दिया है। कमेटी-कमेटी का खेल वर्षों चलता है। यह तय है कि धामी सरकार को यदि सत्ता में वापसी चाहिए तो देवस्थानम बोर्ड को भग कर नये सिरे से इस संबंध में फेसला लेना होगा। तीर्थ पुरोहितों को विश्वास में लेना होगा। बोर्ड से अंबानी और जिंदल ग्रुप के बेटों को हटाना होगा। इसके अलावा भू-कानून को सख्त बनाना होगा।
अब तीसरी बात, यदि देश में एक चुनाव की बात यानी लोकसभा चुनाव के साथ ही राज्यों के चुनाव की बात हो तो उसका विरोध होना चाहिए। क्योंकि जब भी सत्ता किसी को मिलती है तो वह मदमस्त हाथी बन जाता है। तीन कृषि कानूनों से यह बात साबित होती है। जब तक चुनाव नहीं था तो मोदी को कोई डर नहीं था। इतने किसान मर गये और खीरी जैसा जघन्य कांड हो गया। मजाल क्या कि मोदी के कानों में जूं रेंगी हो, लेकिन अब चुनाव में हार का भय है तो आतंकवादी दिख रहे किसान-किसान नजर आने लगे हैं। यदि सभी चुनाव एक साथ हों तो पांच साल तक सरकारें निरकुंश रहेंगी। इसलिए सत्ता पर अंकुश रखने के लिए जनता को अलग-अलग समय पर राज्यों के चुनाव का पक्षधर होना चाहिए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]