मोहित भूखा रहेगा पहाड़ के अस्तित्व को बचाने के लिए

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  • हम आज खा रहे हैं लेकिन यदि इस लड़ाई में साथ नहीं दिया ंतो कल हमारी पीढ़ी भूखी रहेगी!

नाश्ता करने के लिए टेबल पर बैठा ही था कि मोहित डिमरी का फोन आ गया कि 10.30 से भूख हड़ताल पर बैठ रहा हूं। मैं बोला, हां मुझे पता है, इसलिए तुम्हारे भूख हड़ताल पर बैठने से पहले ही भरपेट नाश्ता कर रहा हूं बाद में मुझसे खाया नहीं जाएगा। इस बात पर हम दोनों ही खूब हंसे। पर सच यह है कि सख्त भू-कानून और मूल निवास के मुद्दे पर मोहित और उसके साथियों का त्याग और संघर्ष हम सबकी सोच से कहीं अधिक बड़ा है। हम सब अपने घरों में अपने बच्चों को नाश्ता करने के लिए या खाना खाने के लिए उन्हें डांटते-पुचकारते हैं। उनके पीछे रोटी या परांठे का कौर लिए दौड़ते हैं कि वो कुछ तो खा ले। मोहित और उनकी हमारे नौनिहाल और भावी पीढ़ी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनका यह त्याग हमारी सोच से कहीं अधिक बड़ा है।
आप तर्क दे सकते हैं कि मोहित की राजनीतिक महत्वाकांक्षा है। सही है। लेकिन वह सड़क से सत्ता तक पहुंचना चाहता है तो क्या बुरा है? वह राज्य के मुद्दों पर लड़ रहा है तो क्या बुरा है? वह भूखे पेट कुछ दिन कचहरी परिसर में गुजारेगा तो क्या हम अपने बच्चों को एक दिन भूखा देख सकते हैं? महत्वाकांक्षा है तो क्या बुरा है? गणेश जोशी की बेटी, हरक सिंह रावत की बहू, हरबंस कपूर का बेटा, हरीश रावत का बेटा और बेटी, यशपाल आर्य का बेटा, विजय बहुगुणा का बेटा कौन से संघर्ष और त्याग से राजनीति के शिखर पर पहुंचे हैं? कौन-सा संघर्ष किया है। बॉर्न सिल्वर स्पून चाइल्ड हैं। नेताओं ने हमें लूटा और हमने उन्हें सिर-माथे पर बिठा दिया। ऐसे में यदि मोहित सड़क पर संघर्ष कर आगे बढ़ना चाहता है तो क्या बुरा है? हम भले ही यह जानते हुए भी मूल निवास और भू-कानून के बिना हमारा अस्तिव खतरे में है, हम उसके साथ इस मुद्दे पर भले ही भूख हड़ताल पर न बैठ पा रहे हों, लेकिन उसे अपना नैतिक समर्थन दे सकते हैं। मोहित और उसकी टीम को एक समोसे के बराबर या एक बड़ी सिगरेट के बराबर छोटी-सी धनराशि तो दे सकते हैं। वरना याद रखना, पहाड़ खत्म हो रहा है और पहाड़ी भी।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से)

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