2013 केदारनाथ आपदा के बाद केदारघाटी के सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गए। उनका भविष्य अंधकारमय था। ऐसे में धाद संस्था ने देहरादून के एक होटल में बैठक बुलाई कि इन बच्चों के लिए क्या किया जा सकता है। बैठक में कई एनजीओ के पदाधिकारी भी शामिल हुए। सुझाव आया कि बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ किया जाए ताकि आपदा प्रभावित बच्चों की पढ़ाई न छूटे। सिर पर चश्मा लगाए एक एनजीओ संचालिका ने अंग्रेजी में कहा, यह दायित्व तो सरकार का है। इस बीच एक आवाज आई, 10 बच्चों की पढ़ाई का खर्च मैं दूंगा। बस फिर क्या था, केदारघाटी के 175 बच्चों के जीवन में इल्म की लौ जलती रही और आज इन बच्चों में से कई पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी कर रहे हैं। या उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं।
केदारनाथ आपदा जैसी भीषण आपदा में सरकार के साथ ही सामाजिक दायित्व की भावना की प्रेरणा भरने वाला व्यक्ति और कोई नहीं जयदीप सकलानी ‘दीपू‘ था। कोरोना टाइम में मैंने खुद देखा कि गुपचुप तरीके से दून अस्पताल के स्टाफ को 40 पीपी किट दे दी। गोल्डन गर्ल मानसी नेगी की गुपचुप मदद की ताकि वह दौड़ने के लिए स्पाइक खरीद सकें और कंपीटिशन में भाग ले सके। राज्य आंदोलनकारी दीपू सकलानी के बड़े दिलवाला होने के सैकड़ों किस्से हैं। यह व्यक्ति कुछ अलग है। दूसरों के दर्द पर फौरन पसीज जाता है। बड़े दिलवाले दीपू सकलानी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामना।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)