सिद्धि की मुस्कान से जी उठा धाद का पुनरुत्थान अभियान

94
  • केदारनाथ आपदा पीड़ित सिद्धि का संवर रहा जीवन
  • 2013 की केदारनाथ आपदा में पिता को खो दिया

देहरादून स्थित लोक संस्कृति प्रेक्षागृह के प्रांगण में एक मासूम लड़की मिली। पूरी पहाड़न और हिरनी सी चंचल। उसकी निश्छल और बाल मुस्कान देख सहसा लगा कि सारा प्रेक्षागृह खिलखिला उठा। पहाड़ की ठंडी बयार सी थी वो। इस बिटिया का नाम सिद्धि है। सुंदर और मासूम सिद्धि को देख लगा, काश, पहाड़ की हर बेटी इसी तरह खिलखिलाए, मुस्काराए। सिद्धि की इस मासूमियत के फ्लैशबैक में एक भीषण जलप्रलय की कहानी है, जिसने इस अबोध बच्ची के सिर से पिता का साया छीन लिया।
सिद्धि रावत रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लाक के कोटमा गांव की है। वह मौजूदा समय में नौंवी कक्षा में पढ़ रही है। केदारनाथ आपदा 2013 में उसने अपने पिता देवेंद्र रावत को खो दिया। उस समय उसकी उम्र महज 4 वर्ष थी। वह बताती है कि पिता के पास दो खच्चर थे। जब महाजलप्रलय आई तो उसका भाई प्रियांशु 5 साल का था। कहती है कि मां शकुंतला देवी ने खेती-बाड़ी और गाय का दूध बेचकर परवरिश की। पढ़ाई का खर्च कोटद्वार की रेखा शर्मा (धाद पुनरुत्थान कार्यक्रम) ने उठाया।
धाद ने केदारनाथ आपदा के बाद पुनरुत्थान कार्यक्रम के तहत केदारघाटी के आपदा पीड़ित 175 बच्चों की स्कूली शिक्षा का बीड़ा उठाया। धाद के सचिव तन्मय ममगाईं के अनुसार पिछले 11 साल में संस्था ने आम सहभागिता के सहारे इन आपदा प्रभावित बच्चों की 55 लाख रुपये की आर्थिक मदद की है। धाद के इस अभियान में अब सीआईएमएस के चेयरमैन ललित जोशी जुड़ गए हैं। ललित का कहना है कि इन बच्चों को अपने संस्थान में बिना किसी ट्यूशन फीस के उच्च शिक्षा प्रदान करेंगे। मानसी और संवल दो आपदा पीड़ित इस संस्थान में एजूकेशन ले रही हैं।
आज धाद का पुनरुत्थान कार्यक्रम मानसी और सिद्धि के जीवन संवरने और उनकी मुस्कान से जीवित हो उठा है। उन सभी लोगों में जो धाद के इस कार्यक्रम का हिस्सा बने, एक आत्मसंतुष्टि होगी कि उन्होंने एक बच्चे का जीवन संवारने में कुछ योगदान दिया। सिद्धि को स्पांसर करने वाली रेखा शर्मा कहती हैं कि उन्हें लगता है कि जीवन में कुछ सार्थक किया है। वह सिद्धि के उज्ज्वल भविष्य और उसकी मुस्कराहट यूं ही बने रहने का आशीष देती है। मैं सिद्धि से पूछता हूं कि क्या बनोगी? मासूम सी मुस्कान लिए वह चंचलता से कहती है, कभी लगता है कि डाक्टर बनूंगी, तो जब किसी अफसर को देखती हूं तो अफसर बनना चाहती हूं।
सिद्धि अभी किशोरावस्था में है। उम्मीद है कि 10वीं के बाद ही तय करेगी कि जीवन में क्या करना है, लेकिन राज्य आंदोलनकारी जयदीप सकलानी और धाद की सोच को सलाम है कि उन्होंने सरकार के रहमोकरम पर रहने की बजाए तय किया कि कुछ बच्चों का जीवन संवार दें। सिद्धि की मासूम मुस्कान इस बात का गवाह है कि धाद का पुनरुत्थान कार्यक्रम सफल रहा।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)

#Siddhi_Rawat

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here