इसलिए चाहिए हमें मूल निवास!

44
file photo source: social media

नीट यूजी की परीक्षा में कितनी धांधली हुई। इस धांधली का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड के चार सरकारी और तीन निजी मेडिकल कालेजों के लगभग 700 सीटों में उत्तराखंड के बाहर पढ़ने वाले बच्चों को भी स्थायी निवास के आधार पर राज्य कोटे की सीटें मिल गई। सरकारी कालेजों की 442 सीटों में लगभग 100 सीटें बाहरी प्रदेशों के बच्चों ने हथिया ली। क्यों इन बच्चों के पास स्थायी निवास और अन्य प्रमाणपत्र हैं। ये प्रमाण पत्र कैसे और कहां से जारी हुए। यह जांच का विषय है। यह भी जांच का विषय है कि कहीं अभ्यर्थी ने दोहरा लाभ तो नहीं लिया। मसलन यूपी निवासी ने यूपी की स्टेट काउंसिलिंग में भी वहां के स्थायी निवासी के आधार पर आवेदन कर दिया होगा और उत्तराखंड से भी। चंडीगढ़ में इसी तरह के 16 बच्चे पकड़े गए। पर उत्तराखंड में जांच करेगा कौन? यहां तो सब भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। 50 हजार में कोई भी प्रमाणपत्र बन जाता है।

सरकारी छोड़िये, प्राइवेट मेडिकल कालेज की बात कीजिए। प्राइवेट में कम नंबर भी हों लेकिन पैसे हों तो एमबीबीएस की सीट मिल जाती है। यू ंतो पहले प्राइवेट मेडिकल कालेज में पांच-पांच सीटे स्टेट कोटे के लिए सरकारी फीस के तहत ली जाती थी, लेकिन प्राइवेट मेडिकल कालेज ने शासन से मिलीभगत कर ये कोटा खत्म कर दिया और कहा गया कि स्टेट कोटे के तहत दाखिल बच्चों को फीस में 5 लाख रुपये सालाना की छूट मिलेगी।
चालाकी देखिए, अब निजी मेडिकल कालेजों ने तय कर लिया कि मेरिट के आधार पर पहले 20 बच्चों को ही यह छूट मिलेगी। बाकी को पूरी फीस देनी होगी। इस बार यह है कि नीट यूजी की धांधली के चलते बाहरी प्रदेशों से जुगाड़ से स्थायी प्रमाणपत्र बनाने वाले बच्चों को यह पांच लाख की छूट मिल गई और हमारे मूल निवासी बच्चे और उनके अभिभावक ठगे रह गए। यानी हमारे मूल निवासी बच्चों के हकों पर डाके पर डाका पड़ा है।
जानकारी के लिए बता दूं कि जौलीग्रांट और महंत इंद्रेश में एमबीबीएस की फीस लगभग एक करोड़ 15 लाख के आसपास है। साढ़े चार साल की फीस के एडवांस चेक ले लिए जाते हैं। गौतमबुद्ध की फीस 12 लाख सालाना से बढ़कर इस साल 21 लाख कर दी गई। यानी लगभग 95 लाख फीस देने के बाद बच्चा डाक्टर बनेगा। ग्राफिक एरा की फीस एक करोड़ 30 लाख के करीब है। जब इतनी लूटमार होगी तो डाक्टर जनता की किडनी और फेफडे़ निकालेगा भी और बेचेगा भी। एक करोड़ रुपये में डाक्टरी करने वाला क्या ग्रामीणों की सेवा करेगा या अपने पैसे वसूलेगा? तभी मैं हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहा हूं। और हां, यदि दिमाग है तो समझो, हमें क्यों चाहिए मूल निवास? मूल निवास प्रमाण पत्र की व्यवस्था होती तो स्थायी निवास वाले हमारे हकों पर डाका नहीं डाल सकते थे?
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here