- उत्तराखंडी व्यंजनों के प्रचार के साथ बेटियों को सशक्त बनाने का संदेश
- एक ऐसी गढ़वाली फिल्म जिसकी कहानी हौले से छू जाती है दिल को
पहाड़ की एक बेटी जो गुणी है और उसमें प्रतिभा है तो उसके हौसलों को पंख मिलने चाहे ताकि वह खुल आसमां में बहुत ऊंची उड़ान भर सके। बस, उसे चाहिए प्रोत्साहन और मार्गदर्शन। गढ़वाली फिल्म मीठी, मां कु आशीर्वाद में एक पहाड़ी लड़की के संघर्ष और सफलता की दास्तां है जो हौले से आपके दिल को छू जाती है।
यूं तो मैं फिल्म समीक्षक नहीं हूं और न ही मुझे फिल्मों का अधिक ज्ञान है, लेकिन एक पत्रकार के तौर पर कैमरा और विजुअलाइजेशन, स्क्रिप्ट की थोड़ी समझ है। पांच साथी पत्रकारों के साथ हॉल में मीठी, मां कु आशीर्वाद फिल्म (टिकट लेकर) देखी। कहानी ठीक है, कई पक्ष छूते हैं। क्षेत्रीय सिनेमा के कम बजट की फिल्म में जिस तरह की दिक्कतें आती हैं, उतनी दिक्कतें इस फिल्म में नजर नहीं आई। कैमरा भी ठीक चला है। फिल्म में उत्तरकाशी के जखोल गांव की खूबसूरती को देख इस गांव को देखने की लालसा और बढ़ गई है। डीडी न्यूज में साथी पत्रकार प्रदीप रंवाल्टी ने कहा है कि वो मुझे यह गांव दिखाएगा।
इस फिल्म की कहानी दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब हुई है। बोरिंग और लंबे सीन नहीं हैं। पहाड़ का दुख दिखाया है और संघर्ष भी, लेकिन दर्शकों के पकने वाली बात नहीं है। फिल्म में उत्तराखंडी व्यंजनों को प्रचारित किया गया है लेकिन मुझे लगा कि इस फिल्म से व्यंजनों के साथ ही पहाड़ की बेटियों को एक अच्छा संदेश दिया गया है कि यदि सपने हैं, योग्यता है, प्रतिभा है तो उसे क्षेत्र की सीमाओं तक नहीं बांधें। हौसले को पंख दें और उड़ान भरें। फिल्म में यह बात मुझे सबसे अधिक आकर्षक लगी।
फिल्म में हीरो मोहित और हीरोइन मेघा ने शानदार अभिनय किया है। न्यूज एंकर के तौर दिखाए गए कलाकार का अभिनय भी ठीक-ठाक रहा है। हां, एक सीन जरूर अटपटा लगा कि अफ्रीकन मूल के विदेशी गेस्ट के तौर पर हाफ पैंट में दिखा दिया गया। होटल में उसे सूट-बूट में आना चाहिए था, बाद में भले ही कच्छा पहन लेता। जखोल गांव में महिलाएं परंपरागत वेशभूषा में थी तो दो महिला कलाकारों को भी उसी तरह की वेशभूषा में दिखाना चाहिए था उन्हें अलग से चमकाना ठीक नहीं था। कलाकारों के मेकअप की प्रॉब्लम रही। एक होटल को ड्रोन से जबरदस्ती कई बार दिखाया गया है। पर यह छोटी बातें हैं, कुल मिलाकर फिल्म की कहानी अच्छी है और सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है।
फिल्म में अधिकांश नए कलाकार थे, सरदारजी भी थे। अच्छा अभिनय किया। ये फिल्म मुंबइया या साउथ इंडियन फिल्मों की तरह बहुत बड़े बजट की नहीं है, लेकिन इसकी कहानी और उदेश्य दोनों ही अच्छा है, फिल्म देखी जा सकती है।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)