धामी जी, मत टूटने दो गरीब बच्चों के डाक्टर बनने के सपने

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  • एक लाख टैबलेट बांटने से अच्छा है मेधावी बच्चों को डाक्टर बनने दो
  • देश में सबसे अधिक है उत्तराखंड के मेडिकल कालेजों की फीस

दून मेडिकल कालेज प्रशासन ने एमबीबीएस के पांच छात्रों को हास्टल से निकाल दिया। कारण वो एमबीबीएस की महंगी फीस का विरोध कर रहे थे। प्रशासन नहीं भी निकालता तो भी उन्हें निकलना ही पड़ता। क्योंकि गरीब परिवार को हर साल 4 लाख 26 हजार रुपये की भारी-भरकम फीस जुटाना मुश्किल है। धामी जी, क्या गरीब के बच्चे को डाक्टर बनने का हक नहीं? आप वोट हथियाने के लिए एक लाख बच्चों को टैबलेट बांटने जा रहे हो। रोजगार के नाम पर सब्जबाग दिखा रहे हो। क्या यह बेहतर नहीं होता कि प्रदेश के एक हजार मेधावी बच्चे जो चारों मेडिकल कालेज में पढ़ रहे हैं, उनकी पढ़ाई सस्ती कर दो। ताकि गरीब परिवारों के बच्चे भी डाक्टर बन सके। इससे दो लाभ होंगे। एक गरीब का बच्चा डाक्टर बन जाएगा। दूसरे प्रदेश को डाक्टर मिल जाएगा।
कोरोना काल के दौरान आपकी सरकार में जो घोटाले हुए हैं। पांच रुपये का मास्क 16 रुपये में खरीदा गया। दवाओं, राशन किट और यहां तक कि थैलों पर फोटो चिपकाने पर भी गोलमाल हुआ। इस रकम का एक प्रतिशत भी यदि इन एमबीबीएस के छात्रों पर खर्च कर दी जाती तो दून मेडिकल कालेज के छात्रों को प्रदर्शन और हड़ताल नहीं करनी पड़ती।
दरअसल, हमारे नेताओं की चिन्ता में गरीब हैं ही नहीं। वो चाहते हैं कि वोट किस तरह से हथियाएं। टैबलेट देने से क्या गरीब के बच्चे की किस्मत संवर जाएंगी। कोरोना काल में अक्षर की रिपोर्ट बताती है कि सरकारी स्कूलों के केवल 10 प्रतिशत बच्चों तक ही आनलाइन पढ़ाई पहुंची। यानी वर्चुअल क्लासेस पूरी तरह से फेल रहा। वैसे भी देहरादून समेत अधिकांश इलाकों में इंटरनेट की स्पीड 2 जी से 3 जी भी नहीं हुई। एक लाख टैबलेट देना सरकारी बेवकूफी है और वोटों के लिए प्रदेश पर आर्थिक बोझ लादना।
वैसे भी जब उत्तराखंड के मेडिकल कालेजों की अभी कोई रैंक नहीं है। इसके बावजूद देश में दून और सुशीला तिवारी मेडिकल कालेज की फीस सबसे अधिक है। फैकल्टी और संसाधन देखो, थके हुए हैं। श्रीनगर में बांड सिस्टम है तो फैकल्टी नहीं हैं। बेहतर होता कि सरकार इन मेडिकल कालेजों में फीस की बजाए संसाधन और क्वालिटी एजूकेशन बढ़ाती।
दिल्ली के प्रतिष्ठित मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की फीस 15 हजार, किंग जार्ज मेडिकल कालेज लखनऊ की 55 हजार, पटना मेडिकल कालेज की 80 हजार, एलएलआरएम मेडिकल कालेज मेरठ की फीस 43 हजार, मेडिकल कालेज चंडीगढ़ की फीस एक लाख 20 हजार और एसएन मेडिकल कालेज आगरा की फीस एक लाख 62 हजार ही है। ये सभी कालेज उत्तराखंड के मेडिकल कालेजों से एक हजार गुणा अधिक प्रतिष्ठित हैं। फिर नये राज्य और नये कालेजों में इतनी फीस क्यों? बांड व्यवस्था फिर लागू की जाए, भले ही उसके नियम सख्त हो जाएं, लेकिन गरीब बच्चों के सपनों को तो न तोड़ो धामी जी?
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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