जॉनी, इन पैरों को जमीं पर मत उतारो, छाले पड़ जाएंगे

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  • 150 किलोमीटर की पदयात्रा में ही निकल गया कांग्रेसी महारथी का दम

ओहो, देखो तो सही, कुमाऊं के अघोषित राजकुमार के पैरो में छाले पड़ गए, दुनिया के डाक्टरों, मदद के लिए तुरंत पहुंचो। बड़े नाजुक पैर हैं, पता नहीं सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचते-पहुंचते इनका क्या हाल होगा? सत्ता के साथ कदमताल से माहरा महाराज ने पिछले दो साल में जनता के मुद्दों पर अपने पैर जमीन पर उतारे ही नहीं, ऐसे में जब केदारनाथ प्रतिष्ठा पदयात्रा की बात आई तो पथरीली जमीन उनके नाजुक पैरों की दुश्मन बन गई। सीएम धामी कांवड़ियों के पैर धो रहे हैं, तो केदारनाथ की प्रतिष्ठा बचा रहे करन माहरा के छालों पर मलहम ही लगा जाते तो क्या बिगड़ जाता। आस्था की आस्था रह जाती और दोस्ती और मजबूत हो जाती।
कांग्रेस इन दिनों केदारनाथ प्रतिष्ठा यात्रा कर रही है। केदारनाथ में कथित तौर पर सोना गायब होने और दिल्ली में बन रहे केदारनाथ धाम के खिलाफ यह यात्रा की जा रही है। यानी भाजपा के धर्म के तीर का जवाब धर्मचक्र से देने की कोशिश की जा रही है। यदि हाईकमान का डंडा नहीं होता तो शायद करन इस यात्रा में शामिल भी नहीं होते। पहाड़ की उस जनता की सोचो माहरा महाराज, जो सदियों से इन्हीं ठोस, पथरीली, नुकीली जमीन पर चल रही है और उम्मीद कर रही है कि वो सुबह कभी तो आएगी जब सीमांत गांव के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचेगी। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने पिछले दो साल में अपनी कार्यकारिणी ही नहीं बनाई और न ही प्रदेश के मुद्दों को मजबूती से सड़क या विधानसभा में उठाया है। राज्य गठन के बाद उन्हें अब तक का सबसे कमजोर प्रदेश अध्यक्ष माना जाता है।
बता दूं कि कांग्रेस के असल राजकुमार राहुल गांधी ने जब भारत जोड़ो यात्रा की थी तो 4 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा की थी। क्या उनके पैर नहीं सूजे होंगे या छाले नहीं पड़े होंगे? उन्होंने कहीं दिखाया क्या? सत्ता की सीढ़ियां चढ़नी हैं तो त्याग और समर्पण चाहिए ही। दस साल से सत्ता से दूर हो माहरा जी। सत्ता के साथ होना और सत्ता में होना दोेनों अलग बात है। महाराज, कुछ मेहनत कर लो, कुछ दर्द सह लो, फल मीठा ही मिलेगा।
वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार

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