- जब बच्चा डाक्टरी पर डेढ़ करोड़ खर्च करेगा तो ब्याज समेत कमाने की सोचेगा
- तीन साल में ग्राफिक एरा को 150 सीटों का लाइसेंस, 8 साल बाद भी नहीं बना हरिद्वार मेडिकल कालेज
स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत के गले में रोज-रोज स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टरों की तैनाती को लेकर बयान देते देते दर्द भी नहीं होता है कि आखिर कितना झूठ बोलोगे और कब तक? कभी कहते हैं कि यू कोट वी पे तो अब कह रहे हैं कि एम्स के समान वेतन देंगे। ठीक है, दे भी दोगे तो कौन से डाक्टर आएंगे और क्यों आएंगे? यह भी बता दो मंत्री जी।
सरकार मेडिकल शिक्षा पर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा हाल ही में जारी नेशनल मेडिकल कांउसिल की लिस्ट से पता लग जाता है। ग्राफिक एरा को एमबीबीएस की 150 सीटों की अनुमति मिल गई है। तीन साल में यह कालेज तैयार हो गया, लेकिन हरिद्वार मेडिकल कालेज 8 साल बाद भी 80 प्रतिशत ही बना है। रुद्रपुर और पिथौरागढ़ के तो हाल ही मत पूछो।
प्रदेश के सभी प्राइवेट मेडिकल कालेज एमबीबीएस के लिए हर साल फीस बढ़ा देते हैं। पिछले साल तक फीस एक करोड़ थी जो कि इस साल एक करोड़ 20 लाख हो जाएगी। जब कोई अभिभावक डेढ़ करोड़ खर्च कर अपने बच्चे को डाक्टर बनाएगा तो वह सरकारी में उसे क्यों भेजेगा? गरीब, मजदूर और किसान मरीज उसके करोड़ों की वसूली कैसे करवा पाएंगे?
धनदा, अपने दिल पर हाथ रखो और पूछो, क्या किया आपने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए। कुछ भी नहीं। डाक्टरों को क्या सुविधा देते हो। बागेश्वर का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को जिला अस्पताल बना दिया गया। 24 साल बीत गए, वहां जिला अस्पताल नहीं बन सका। मैंने खुद देखा है कि बागेश्वर के डाक्टर किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। केबिन में मरीजांें की सांसें डाक्टर से टकराती हैं। मंत्री जी, एम्स के डाक्टर को देखा है कभी। कितना डिस्टेंस होता है मरीज और डाक्टर में! और सुनो चम्पावत में फार्मासिस्ट डाक्टरों के लिए निर्धारित भवन में रह रहे हैं और डाक्टर किराये के भवन पर। फार्मासिस्ट के आगे सरकारी डाक्टर की कोई औकात नहीं।
आपके दून, श्रीनगर मेडिकल कालेज में भी पर्याप्त फैकल्टी नहीं है। अल्मोड़ा की तो बात ही छोड़ दो। सरकार अपने गिरवां में झांकें कि स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधार के लिए कितने गंभीर प्रयास किए गए हैं। जब बुनियाद ही ठीक नहीं होगी तो इमारत तो ढहेगी ही। धनदा, आपके गले में जो विशेषज्ञ डाक्टर- विशेषज्ञ डाक्टर चिल्लाने से दर्द हो रहा होगा न, आप उसे गले को दिखाने के लिए भी गुरुग्राम के मेदांता या दिल्ली के एम्स भागोगे, क्योंकि आपने व्यवस्थाएं सुधारी ही नहीं।
यदि प्रदेश के चारों सरकारी मेडिकल कालेज में अच्छे संसाधन होते, हरिद्वार, रुद्रपुर, पिथौरागढ़ मेडिकल कालेज खुल गया होता तो गरीब और मध्यम वर्ग के जो बच्चे इन कालेजों से सस्ते में डाक्टर बने होते तो वो ही गरीब, किसान और मजदूरों की व्यथा और उनका मर्ज ठीक करने की कवायद करते। करोड़ों की फीस देने वाले 28 रुपये की ओपीडी की पर्ची पर मरीजों की जांच कैसे करेंगे? खुद ही सोच लो और शर्म करो कि हरिद्वार, रुद्रपुर और पिथौरागढ़ मेडिकल कालेज समय से नहीं खोल पाए।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)