- फ्रंट पेज पर इस तरह के विज्ञापन देकर करोड़ों लुटाना ठीक नहीं
- बेशक एड एजेंसी सिफारिशी ही होगी लेकिन ये एजेंसी आपकी लुटिया डुबो देगी
सीएम पुष्कर सिंह धामी का कल जन्मदिन था, इसलिए मैंने उन्हें कल कुछ नहीं लिखा। भई, जन्मदिन है लेकिन जनता का पैसा फूंककर जन्मदिन मना रहे हो क्या? पहले ही जनता 66 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी है। मार्च महीने से जो त्रिवेंद्र चचा के चार साल के करोड़ों रुपये के होर्डिंग्स, पोस्टर-बैनर थे, वो तीरथ भैजी के आते ही बदल डाले गये। चार महीने बाद आप आ गये तो फिर करोड़ों के होर्डिंग्स लग गये। यदि आरटीआई लगाई जाए तो पता चलेगा कि मार्च से अब तक भाजपा सरकार ने जनता के एक अरब रुपये से भी अधिक प्रचार में लुटा डाले तो कर्मचारियों, भोजनमाता, आंगनबाड़ी आदि कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा।
कल प्रदेश के सभी हिन्दी अखबारों में जैकेट यानी फ्रंट पेज विज्ञापन था। संभवतः लाखों खर्च हुए होंगे, क्योंकि फ्रंट पेज विज्ञापन लगभग दोगुने रेट पर पब्लिश्ड होता है। चलो विज्ञापन दिया भी लेकिन उस विज्ञापन का क्लास तो देखो। हद है इतना घटिया विज्ञापन। बता दूं कि मैंने विज्ञापन का मैटर नहीं पढ़ा, पता नहीं क्या लिखा हो? इतनी सारी हवाई बातें नहीं पढ़ सकता, इसलिए केवल ले-आउट पर बात कर रहा हूं।
सीएम साहब, ये विज्ञापन जिस भी एड एजेंसी ने बनाया है, उसे तुरंत बदल डालें। इतना घटिया पेजीनेशन और हैडिंग मैंने आज तक किसी भी सरकार का नहीं देखा। इस एड ने सभी अखबारों के चेहरे बिगाड़ डाले। वो चुप इसलिए हैं कि उन्हें पैसे मिल रहे। यदि पुराने जमाने की बात होती तो अखबार इस एड को फ्रंट पेज पर छापने से मना कर देते। योगी सरकार का विज्ञापन इंडियन एक्सप्रेस में भले ही मां फ्लाईओवर का रहा हो, लेकिन उस एड की डिजाइन क्लास वन थी। आपके विज्ञापन ऐसा है कि किसी नौसिखिए ने पेपर पर ढेर सारी स्याही छोड़ दी हो।
यह विज्ञापन पूरी तरह से घटिया बनाया गया। कोई भी जानकार बता सकता है कि नौसिखिये डिजायनर और नौसिखिए सब-एडिटर ने विज्ञापन बनाया। यानी उसे अखबारी दुनिया के ले-आउट का जरा सा भी ज्ञान नहीं है। विज्ञापन के पेज की लीड लटक रही है। बाक्स का मैटर टकरा रहा है। रिवर्स हेडिंग जच नहीं रही। अखबार कलर हैं तो विज्ञापन इतना फीका क्यों? बैलेंस पेज की थ्योरी की ऐसी-तैसी कर दी एड एजेंसी वाले ने। किसी भी हैडिंग का प्वाइंट साइज मैच नहीं कर रहा। बॉटम या एंकर स्टोरी की हैडिंग देखकर डिजाइनर के बाल नोंचने का मन कर रहा है। बाक्स के साथ बाक्स टकरा रहा है। बाटम वाले बाक्स में जो बाक्स रिवर्स कर दिया तो उसमें लिखा क्या, ढंग से पढ़ा नहीं जा रहा। विज्ञापन में भू कानून की जो फोटो दी गयी है, उसे देखो, डिजायनर को फोटो गैपिंग की जानकारी भी नहीं है। फोटो और मैटर चिपक रहा है।
धामी जी ऐसा अनर्थ न करें, जनता के गाढ़े खून-पसीने का पैसा यूं बर्बाद करना ठीक नहीं होगा। आखिर सूचना विभाग के अधिकारी क्या कर रहे थे? जांच का विषय है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]