- हरियाणा से खदेड़े गये तीन भाई देहरादून आए और यहां के लिए भस्मासुर पैदा कर गये
- पहाड़ियों को सर छोटू राम के जीवन से प्रेरणा लेने की जरूरत
आजादी के आसपास की बात है। हरियाणा में एक समय साहूकारों ने आतंक मचा दिया था। जाट समुदाय ऐसे सूदखोरों से परेशान हो गया था। सर छोटू राम ने अभियान चलाया। जाटों ने ऐसे साहूकारों को मार-मार कर वहां से खदेड़ दिया। गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट-1938 के तहत ऐसे सूदखोरों से किसानों की जमीनें वापस ले ली गयी। सर छोटू राम ने ही सूदखोरों पर अंकुश लगाने के लिए साहूकार पंजीकरण एक्ट भी बनवाया था। इसका परिणाम निकला कि पंजाब और हरियाणा के किसानों को सूदखोरों से मुक्ति मिल गयी। जब जाटों ने सूदखोरों को वहां से भगाया तो इनमें तीन युवा भाई भी थे। ये तीनों भागकर देहरादून आ गये।
देहरादून आने पर एक भाई ने मूंगफली बेचना शुरू किया तो दो आवारा ही रहे। मूंगफली बेचकर कमाए धन से डोईवाला में एक खोखा पर किराने का सामान बेचना शुरू किय गया। घटतोली की और महंगा सामान बेचकर अधिक मुनाफा कमाना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि बनिये को एक फुट जगह दो तो वह साल में 400 फुट जगह बना लेता है। धंधा चल निकला। बनिया बुद्धि थी तो एक भाई ने आरएसएस ज्वाइन कर ली तो एक भाई ने भाजपा और एक ने कांग्रेस। यानी सरकार किसी की भी आए, हर हाल में लाभ उन्हीं को मिलना था।
इधर, उस दौर में दूधली के एक परिवार की खूब चलती थी। वह परिवार धनवान था। फिल्म अभिनेत्री अर्चना पूरन सिंह के संबंधी बताए जाते हैं। उनकी छवि पहाड़ी समाज में खराब हो गयी थी तो इसका लाभ तीनों बनिया भाइयों ने उठाया। पहाड़ी लोगों को अपने साथ मिला लिया। चालाकी की और एक भाई के बेटे की शादी पहाड़ी लड़की से करा दी। इसका लाभ मिला और यह परिवार राजनीति में स्थापित हो गया। इसके दुष्परिणाम आज हम सब भुगत रहे हैं।
सलाह यही है कि अब पहाड़ियों को सर छोटू राम और उनके कार्यों को याद करना चाहिए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
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