- उत्तराखंड़ी व्यंजनों को नई पहचान देने में जुटीं
- ‘बूढ़ दादी‘ के ढिंढका, सिडकू, विरंजी का लें स्वाद
देहरादून के हरिद्वार रोड पर रिस्पना पुल से 200 मीटर की दूरी पर जोगीवाला की ओर जाते हुए एक पेट्रोल पंप है। इस पंप के साथ सटी है एक छोटी सी दुकान है ‘बूढ़ दादी‘। एक टेबल और चार कुर्सियां। उधार लिया एक फ्रिज और मोमो बनाने वाले बर्तन। इस छोटी सी दुकान में उत्तराखंड के बहुत बड़े सपने पल रहे हैं। यह सपने हैं उत्तराखंडी व्यंजनों को नई पहचान देने और लोकप्रिय बनाने के। दीपिका कहती है कि कुछ भी हो जाएं, मोमो नहीं बनाउंगी, न बेचूंगी।
दीपिका ने अपने पति कपिल डोभाल के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया है। कपिल वर्षों से चकबंदी और इन उत्तराखंडी व्यंजनों को लेकर प्रयोग कर विफल हो चुका है। टैग लग गया है कपिल फेल। हम पहाड़ी उसे निकम्मा और विफल कहते हैं क्योंकि उसके प्रयोग सफल नहीं, हुए। होते भी कैसे, जब हमने उसके प्रयोगों को कभी अपना समर्थन दिया ही नहीं।
एक बार फिर किसी से 20 हजार रुपये उधार लेकर वह मैदान में पहाड़ तलाश रहा है। इस बार नेतृत्व दीपिका कर रही है। दीपिका बचपन से ही राजस्थान में पली-बढ़ी है। वह बाटी-चूरमा बनाती थी लेकिन कपिल के सपनों को साकार करने के लिए ढिंढका तलने लगी है।
सार में बताता हूं। ढिंडका मंडुआ और गहथ का बना होता है। इसे देशी घी में तैयार किया जाता है। दो चटनियों के साथ सर्व किया जाता है। विरंजी झंगोरे और सब्जियों से बनता है। सिड़कु का बेस चावल का होता है और इसमें भंगजीरा, नारियल, अखरोट और बादाम होता है। असकली मल्टी आटे से बनता है। इसमें मंडुआ, चावल, चौलाई आदि होता है।
ढिंडका 100 रुपये में चार पीस, विरंजी फुल प्लेट 120 रुपये चटनी और रायते के साथ, सिड़कू दो पीस 60 रुपये और असकली 10 पीस 60 रुपये के हैं। दीपिका के अनुसार दुकान में 47 किस्म के पहाड़ी व्यंजन उपलब्ध हैं।
मैं सभी लोगों से अपील कर रहा हूं कि दीपिका के इस प्रोजेक्ट में मदद करें। असली उत्तराखंडियत हरदा की पुस्तक में नहीं, और न ही किशोर उपाध्याय के वनाधिकार आंदोलन में है बल्कि दीपिका के सहयोग में है। आप महज 50 रुपये के दो ढिंढका खाकर उसका सहयोग कर सकते हैं। उसे क्राउड फंडिंग नहीं चाहिए। सहयोग चाहिए ताकि उत्तराखंडी व्यंजनों को नई पहचान मिले। जोगीवाला के आसपास होम डिलीवरी भी हो सकती है यदि आर्डर 500 रुपये का है तो।
आप अपने आर्डर 9634542086 पर बुक करा सकते हैं। दीपिका का सहयोग करें, उत्तराखंडियत बचाएं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]