यूकाडा की आंखों में भ्रष्टाचार का चश्मा है!

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  • केदारनाथ में धड्ल्ले से होती है मानकों की अनदेखी
  • बाबा का द्वार आस्था का केंद्र, सैर-सपाटे का नहीं

केदारनाथ में आज जो हुआ वह दु:खद है। उकाडा के एक कर्मचारी की चॉपर के विंग से कट कर मौत हो गयी। इससे पहले पिछले साल एक और चॉपर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। दरअसल, यह केदारनाथ धाम में हेली सेवाओं की लूट-मार, लालच और उकाडा और डीजीसीए के मानकों की अनदेखी है। ऐसे हादसे यहां अभी और बढ़ेंगे, क्योंकि हेली सेवाएं मानकों के अनुसार चलती ही नहीं हैं।
उदाहरण देता हूं। मैं और मोहित डिमरी मई 2019 को केदारनाथ धाम गये। फाटा से हम जिस हेलीकॉप्टर में बैठे। उसने उड़ान भरी। मैं पायलट के बगल में था और मोहित पीछे। अचानक ही हेलीकॉप्टर ने यू-टर्न ले लिया। मैं समझ नहीं पाया। वापस हेली पट्टी में लैंड करने के बाद मैंने पायलट से पूछा कि क्या हुआ। वह बोला मौसम पैक। यानी दस मिनट के सफर में ही केदारनाथ का मौसम बिगड़ गया। यह तो है पहली बात।
दूसरी बात, जब दूसरे दिन हम केदारनाथ धाम में बने एमआई-17 हेलीपैड में पहुंचे तो वहां तीन अन्य हेलीकॉप्टर भी थे। तीनों के विंग उतनी ही तेजी से चल रहे थे। जब हम वहां पहुंचे तो ग्राउंड स्टाफ तेजी से मेरी सीट वाले गेट की ओर लपका। उसने मुझे नीचे उतारा और कहा कि जैकेट की चेन पूरी तरह से बंद कर दो। कोई कागज या शाल बाहर नहीं होना चाहिए वरना चॉपर के विंग में आने का खतरा है। यानी वहां शॉटी ऐसी होती है कि चॉपर को खड़ा करते ही नहीं। वह स्टार्ट होता है। यात्रियों को भेड़-बकरियों की तरह चॉपर में बिठाया जाता है और वह फिर उड़ जाता है। एनजीटी ने भी कहा है कि केदारनाथ वन्य अभयारण्य है। 600 मीटर की ऊंचाई पर उड़ो। कोई नहीं सुनता।
इस बार 9 हेली सेवाओं को लाइसेंस मिला है। मैं सभी नौ में गया था। बदहाल हैं। पैसेंजर को खेतों की मुंडेर पर बिठाया जाता है। एक-दो सेवाओं के पास ही आठ-दस कुर्सियां होंगी। टिन शेड में आफिस बने हैं और हेलीड्रम को छोड़ कोई किसी की परवाह नहीं करता। उनको लगता है कि ये पैसेंजर हैं, तीर्थयात्रा पर आए हैं। मर जाएंगे तो स्वर्ग जाएंगे। परेशान करो इन्हें। डीजीसीए और यूकाडा के अफसरों को कमीशन मिलता होगा शायद उधर, मंत्री और अफसर का कमीशन तो तय बताया जाता है।
यह बात सरकारों की समझ में नहीं आती हैं कि केदारनाथ धाम तो कम से कम उन तीर्थयात्रियों के लिए सुरक्षित रख दो जो सही मायने में शिव भक्त हैं। 19 किलोमीटर की यात्रा कर यहां पहुंचेंगे। लेकिन नहीं, पैसा है तो शिव महिमा है। भक्ति का यह शार्ट कट है। पर्यावरण का नुकसान है और यात्रियों का जीवन खतरे में है। सभी हेली सेवाएं बाहरी लोगों की हैं तो यहां से कमाई भी उन्हीं की होती है। हम तो ज्यादा से ज्यादा ग्राउंड स्टाफ हैं और एक-दो में मैनेजर हैं।
मैंने राज्य सरकार के विमान उड़ाने वाले एक पूर्व पायलट से पूछा कि नौकरी क्यों छोड़ दी। वह बोला, डीजीसीए के नियम मंत्री मानते ही नहीं। हर्षिल जैसे इलाके में जहां हेलनेट लगे हैं, वहां भी हेलीकॉप्टर या विमान उतारने को कह देंगे। मंत्रियों का क्या जाता है? जान तो हमारी जाएगी। उस पायलट की बात आज याद आ रही है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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