- अनियोजित विकास को तो रोका नहीं, रिहाइशी कालोनियों में शांति भंग के प्रयास
- 311 पेज के ड्राफ्ट मास्टर प्लान को समझेगा कौन, बेकार में मांग रहे जनता से सुझाव
जिस राज्य के लोगों को चारों ओर मजार नजर आती हों और घर के आगे गड्ढे युक्त सड़कें, बदहाल स्कूल और नेताओं के साथ मिलीभगत कर भूमाफिया द्वारा कब्जाई गयी सरकारी जमीन नहीं दिखती हों, वहां यदि कोई टाउन प्लानर अगले 18 वर्षों के लिए देहरादून का मास्टर प्लान ले आए तो भला उसको समझेगा कौन? उत्तराखंड के सबसे भ्रष्टतम और निकम्मे विभागों में शुमार एमडीडीए के ड्राफ्ट मास्टर प्लान 2041 को यदि देखा जाएं तो लगता है कि यह प्लान आर्किटेक्ट और टाउन प्लानर ने छककर भांग पीने के बाद तैयार किया है। 311 पेज का ड्राफ्ट इतना जटिल है कि इसे समझना ही मुश्किल है। इसमें कई कालोनियां गायब हैं तो सड़कों की स्थिति भी स्पष्ट नहीं है।
एमडीडीए का पिछला रिकार्ड देख लो, मास्टर प्लान (संशोधित)-2013 के बारे में जानकारी मिली है कि इसकी कोई किताब तक जारी नहीं की गई। इस मास्टर प्लान में बिना किसी सर्वे के देहरादून शहर में 62 सड़कों पर कॉमर्शियल घोषित कर दिया गया। जबकि ऐसा करने से पहले फिजिकल सर्वे किया जाना चाहिए था। इस मास्टर प्लान में जोन निर्धारित नहीं किये थे। जबकि धारा 8 (1) के तहत जोन निर्धारण आवश्यक है। बताया जाता है कि 2014 में पुराने मास्टर प्लान यानी 2008 के मास्टर प्लान से जोन कॉपी करके गलत तरीके से इस मास्टर प्लान में डाल दिये गये।
इस बार का ड्राफ्ट देख कर दून को दिल्ली के गांधीनगर या चांदनी चौक बनाने की कल्पना कर सिहरन सी हो रही है। सबसे खतरनाक बात यह है कि प्लान में शहर के कई क्षेत्रों में मिक्स लैंड यूज्ड को लागू किये जाने का प्रावधान किया गया है। कौलागढ़, रेसकोर्स, वसंत विहार, विजयपार्क जैसे शांत रिहाइशी इलाकों को इसमें शामिल कर दिया गया है यानी अब यहां कार्मशियल गतिविधियां भी हो सकती हैं। यानी मिश्रित भू-उपयोग वाले रिहाइशी इलाकों में होटल, हास्टल, रेस्तरां, हास्पिटल, सिनेमागृह, बैंक्वेट आदि खोले जा सकते हैं। यानी इन इलाकों की शांति पूरी तरह से भंग हो जाएगी।
एसडीसी फांउडेशन के अनूप नौटियाल ने कहा कि ड्राफ्ट 311 पेज का है। इसे जनता आसानी से समझ नहीं सकती। इसे आसान भाषा में तैयार किया जाना चाहिए था या इसके प्रमुख बिंदुओं को उजागर करना चाहिए था, ताकि जनता की राय ली जा सके। उन्होंने मिश्रित भू-उपयोग को शांति भंग की संज्ञा दी। उनका सुझाव है कि जो क्षेत्र पहले से ही कार्मिशियल हैं, वहीं इस तरह की व्यवस्था की जानी चाहिए।
एमडीडीए ने 30 अप्रैल तक आपत्तियां मांगी हैं। आम लोगों की लड़ाई तो रोज सुबह पेट से शुरू होती है और शाम तक पेट पर खत्म हो जाती है, ऐसे में उनसे उम्मीद करना बेकार है, लेकिन कुछ पढ़े-लिखे लोग और आरडब्ल्यूए, सामाजिक संगठन इस ड्राफ्ट की विसंगतियों पर आपत्ति दर्ज कर ही सकते हैं। नहीं तो, एमडीडीए शहर का सत्यानाश कर देगी। जागो दूनवासियों। धर्म तभी बचेगा जब जीवन बचेगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
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