- सही फैसला, सब खुशहाल हैं, समृद्ध हैं, संपन्न हैं तो सत्याग्रह की क्या जरूरत?
- वक्त के साथ बदलें, पहले यहां टीएसआर जिम था अब हैंडसम जिम हो गया
देहरादून के गांधी पार्क में धरने पर पाबंदी लगा दी गयी है। ठीक ही तो है। यह पार्क है। यहां बच्चे टॉय ट्रेन में बैठते हैं। जोड़े बैठते हैं। बुजुर्ग वॉक करते हैं और जो बेरोजगार युवा हैं वह कसरत भी करते हैं। सोचते हैं कि अग्निवीर, वन रक्षक, सचिवालय रक्षक या पुलिस में भर्ती हो सकेंगे। सरकारी जिम है। फ्री। गांधी जी बीच पार्क में जीरो प्वाइंट का चश्मा लगाए देश की प्रगति को देख रहे हैं।
देश में अमृतकाल या मित्रकाल जो भी चल रहा है, चल रहा है। गांधी जी ने देखा कि दो साल में पार्क के हालात बदल गये। कभी यह टीएसआर जिम होता था। टीएसआर की विदाई हुई तो अब वहां हैंडसम या सो कॉल्ड धाकड़ धामी चमकने लगे। कॉमन है मेयर का चेहरा नहीं बदला। हां, इस दौरान उनकी माली हालत बदल गयी। सड़क से सत्ता का सफर तय किया है मेयर साहब ने। एहसान मानों की पत्नी और बेटी से नौकरी छुड़वा ली। दो वैकेंसी बेरोजगारों के लिए हो गयी।
गांधी जी पिछले महीने उदास हो गये थे। युवा बेवजह ही अमृतकाल में धरना दे रहे थे। पुलिस प्रशासन को बुरा लगा और सूत दिया उन्हें। किसी का सिर फूटा तो किसी की टांग टूट गयी। बेचारे गांधी जी देखते रहे। भला जब अमृतकाल चल रहा हो। सब खुशहाल हैं, समृद्ध हैं, संपन्न हैं तो सत्याग्रह की जरूरत ही क्या है? नौकरी मिले न मिले, न्याय मिले न मिलें, पांच किलो राशन तो मिल ही रहा है और क्या चाहिए? ऊपर से देशभक्ति और हिन्दू राष्ट्र का तड़का। सरकार का सही फैसला है, गांधी पार्क में धरना मना है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]