सरकार, ऐसे तो बेटियां सशक्त नहीं होंगी!

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  • भगवा पर सवाल किये तो स्मृति पर केस बना दिया
    स्मृति को गैंगरेप और जान से मारने की धमकी तो पुलिस खामोश क्यों?

नैनीताल में हाल में एक ब्लॉगर स्मृति नेगी ने भगवा ध्वज पर टिप्पणी की। कुछ विवादित टिप्पणियां भी की। इसे लेकर कुछ लोगों ने हिन्दुओं की आस्था से जोड़ा और धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगा कर कई गैर जमानती धाराओं में केस दर्ज करा दिया गया। इस मामले में हाईकोर्ट ने फिलहाल उसे राहत दे दी है।
बता दूं कि स्मृति कोई प्रोफेशनल ब्लागर नहीं है। वह अधिक पढ़ी-लिखी भी नहीं है न ही कानूनी भाषा ही जानती है और चूंकि पत्रकार भी नहीं है तो प्रेस लॉ का बोध भी नहीं है। ऐसे में उससे निश्चित तौर पर बोलते समय कुछ चूक हो गयी। ऐसी चूक किसी से भी हो सकती है। उसकी अभिव्यक्ति और भावनाओं को समझा जाना चाहिए था। गैर जमानती धाराएं क्यों लगाई गयीं, यह विचारणीय प्रश्न है। पुलिस उस वीडियो को हटा सकती थी या चेतावनी देकर छोड़ सकती थी।
चलिए पुलिस ने केस दर्ज कर लिया। सुबह मैंने स्मृति से बात की तो उसने बताया कि वह मानसिक यातना से गुजर रही है। उसके मुताबिक उसे गैंगरेप और जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। उसने पुलिस से शिकायत की, लेकिन पुलिस मूक बनी हुई है। उसका कहना है कि क्या जान से मारने की धमकी या गैंगरेप की धमकी पर केस नहीं बनता? उसके परिजन भी सदमे की सी स्थिति में हैं। वह कहती है कि अंकिता भंडारी हत्याकांड में कई हिन्दूवादी नेताओं के नाम सामने आए तो उसने रौ में बहकर वीडियो में टिप्पणी कर दी थी। स्मृति बताती है कि बेहद साधारण ब्लाग बनाती है। जहां जाती है, वहां की वीडियो बना कर अपलोड कर देती है।
बता दूं कि स्मृति देहरादून में रहती है। उसने कंप्यूटर साइंस से पालीटेक्निक किया है। उसके पिता फौजी हैं। मुरादाबाद के जिस व्यक्ति से उसने शादी की वह धोखेबाज निकला। तलाक का केस अदालत में विचाराधीन है। उसका एक पांच साल का बेटा है जो पति के पास है। अदालत ने उसकी कस्टडी नहीं दी। ससुराल पक्ष वाले स्मृति को अपने बेटे से भी नहीं मिलने देते। पारिवारिक समस्याओं के बावजूद स्मृति लड़कर जीने की जिद लिए है, लेकिन समाज उसका दुश्मन बन रहा है। उसे अब घर और बाहर दो मोर्चो पर एक साथ लड़ना पड़ रहा है।
स्मृति ने विवादित टिप्पणी की। यह उसके अबोधपन और अन-प्रोफेशनलिज्म का परिणाम था। लेकिन उन लोगों का क्या, जो उसे गैंगरेप और जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। सरकार, शासन और पुलिस प्रशासन बताए कि ऐसे लोगों के लिए कानून है या नहीं। जो धमकियां दे रहे हैं, उन पर भी केस दर्ज होना चाहिए। यदि महिलाओं को इस तरह से मानसिक यातना दी जाएगी तो वह सशक्त कैसे होंगी?
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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