उत्तराखंड में हो रहा भ्रष्टाचार का सिजेरियन प्रसव

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  • रोज पैदा हो रहा एक नया करोड़पति नेता-अफसर
  • नकल कानून को लेकर आभार रैली क्यों? शुचिता और पारदर्शिता सरकार जिम्मेदारी

हल्द्वानी में कल नकल कानून को लेकर भाजपा की आभार रैली हुई। भीड़ जुटी या नहीं जुटी, सवाल यह नहीं है। सवाल यह है कि क्या एक सीएम राज्य के बेरोजगारों की मांग को कुचलने के लिए किस तरह की नीति अपना रहा है? आखिर किस बात का आभार? अध्यादेश ही तो लाए हो, पहला ही केस बेरोजगार के खिलाफ बना दिया? अध्यादेश में तो सरकार अपना हित साधती है। जब हाईकोर्ट ने सड़कों से अतिक्रमण हटाने के लिए आदेश दिये तो त्रिवेंद्र सरकार भी मलिन बस्तियों को बचाने के लिए अध्यादेश ले आयी, क्योंकि वोट बैंक का सवाल था। अब बेरोजगारों के आंदोलन को कुचलने के लिए अध्यादेश ले आए।
यदि सरकार नकल कानून को लेकर बहुत ईमानदार थी तो अध्यादेश की जरूरत नहीं थी। इसे विधानसभा के पटल में लाया जाता। इस पर सदन में चर्चा होती। बिल को पास कराया जाता। अध्यादेश में कई विसंगतियां हैं। जो शिकायत करेगा, या सवाल करेगा तो उसके खिलाफ ही केस दर्ज करा दिया जाएगा। और कई विसंगतियां हैं। वैसे भी सुशासन और पारदर्शिता तो सरकार की जिम्मेदारी होती है तो नकल कानून लाकर क्या बड़ा काम किया।
मैंने अध्यादेश के कुछ पहलुओं पर अधिवक्ताओं और अन्य बुद्धिजीवियों से बातचीत की है। वह इसका अध्ययन कर रहे हैं, इस पर डिटेल रिपोर्ट दूंगा। लेकिन मुझे आश्चर्य इस बात पर हो रहा है कि नकल कानून पर आभार रैली निकल रही है। क्या प्रदेश में परीक्षाएं नकल मुक्त हो गयी हैं? भर्ती परीक्षाओं में नकल के लिए जिम्मेदार सभी लोग जेल के पीछे चले गये? परीक्षाएं पारदर्शिता के साथ हों, क्या यह कानून गारंटी दे रहा है? लोक सेवा आयोग और यूकेएससएससी में सभी व्यवस्थाएं और सभी पदों पर नियुक्तियों की जांच हो गयी है क्या? यहां तैनात अधिकारियों की संपत्ति और उनकी ईमानदारी की क्रॉस जांच हो गयी क्या?
अभी कई सवाल यथावत बने हुए हैं। इस प्रदेश का दुर्भाग्य है कि यहां की जनता हिन्दुत्व और झूठे राष्ट्रवाद की मीठे चासनी को चाट कर मदहोश है। उन्हें पांच किलो राशन नजर आता है लेकिन अपने घर में ही बेरोजगार बैठे युवा नजर नहीं आते। जनता की आंखों पर गंधारी की तरह मोदी और भाजपा की पट्टी बंधी हुई है। ऐसे में उन्हें उत्तराखंड के मंत्रियों की रातोंरात बढ़ रही कई सौ गुणा कमाई और अथाह संपत्ति नजर नहीं आती कि आखिर बिना किसी उद्योग के ही वह अकूत संपत्ति आई कहां से? उन्हें यह सवाल भी नहीं सूझता कि नेताओं के बच्चे नेता बनेंगे, लेकिन उनके बच्चे क्या बनेंगे? उन्हें बस यह नजर आता है कि मुस्लिम उनके दुश्मन हैं। जबकि नेता जनता के सबसे बड़े दुश्मन बन गये हैं।
देश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी अमृतकाल नहीं मित्रकाल चल रहा है। यहां बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस के नेता गलबहियां करते नजर आते हैं। सच यही है कि जो भाजपा है वही कांग्रेस है और जो कांग्रेस है वही भाजपा है। उत्तराखंड में हर रोज कई बार भ्रष्टाचार का अवैध सिजेरियन प्रसव होता है और हर रोज एक नेता और अफसर करोड़पति बन जाता है। ऐसे में नेताओं और अफसरों के बच्चों को भला क्यों नौकरी की जरूरत होगी?
यहां सवाल करने या न्याय मांगने पर स्मृति नेगी, बॉबी पंवार, लुसुन टोडरिया को कानूनी शिकंजे में कस दिया जाता है लेकिन भ्रष्ट मंत्रियों और नेताओं को सीने से चिपका कर रखा जाता है। क्या यही है अमृत काल।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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