- पौड़ी के ईडा गांव में एक गुरुजी का जुनून ला रहा रंग
- मार्केटिंग की व्यवस्था न होने से मवेशी खा रहे माल्टा
पौड़ी के मवालस्यूं पट्टी के ईडा गांव के 78 वर्षीय प्रोग्रेसिव फार्मर सत्यप्रकाश थपलियाल के आंगन में प्रवेश करता हूं तो वहां गुलाब की पंखुड़ियोa से मेरा स्वागत होता है। मैं चौंक गया कि पहाड़ में गुलाब। इस इलाके में कम ही देखने को मिलता है। लेकिन यह सत्यप्रकाश थपलियाल जी की 35 साल की अथक मेहनत और जुनून का ही परिणाम है कि बंजर होते पहाड़ में खुशियों की फसल लहलहा रही है। यह जुनूनी किसान मुख्य तौर पर एक रिटायर्ड प्रधानाचार्य हैं। उनके बगीचे में गुलाब के अलावा गुडहल, गुलदावरी, मिली, कचनार, गेंदा, चम्पा, चमेली और सूरजमुखी समेत 12 प्रजाति के फूल होते हैं।
इंद्रापुरी स्कूल के पूर्व प्रधानाचार्य सत्यप्रकाश थपलियाल जी के बगीचे में फलों के 449 पेड़ हैं। इनमें आम, केला, अखरोट, पुलम, नींबू, माल्टा, नारंगी, अमरूद, पपीता, नाशपाती आदि शामिल हैं। उन्होंने यहां कीनू का पेड़ भी उगाया लेकिन उसके परिणाम आशातीत नहीं रहे। वह बताते हैं कि पिछले 35 साल से वह इस बाग को सींच रहे हैं। इसमें उनकी पत्नी और बेटियों की अहम भूमिका रही है। पिछले 18 वर्ष से वह इस बाग की देखभाल खुद कर रहे हैं।
वह कहते हैं कि पहाड़ में विषम परिस्थितियां हैं। माल्टा दिखाते हैं कि सीजन है लेकिन खरीददार नहीं हैं। इस उम्र में बाजार तक उत्पादन नहीं पहुंचा सकता हूं तो ग्रामीणों को और अन्य को कहता हूं कि तोड़ों और खा लो। वह गर्व से कहते हैं कि मां ज्वाल्पा देवी में उनके बाग के ही फल चढ़ते हैं। वह नि:शुल्क सेवा करते हैं। माल्टा के सीजन में जब ग्राहक नहीं मिले और ग्रामीण भी खा कर थक गये तो माल्टा मवेशी खा रहे थे।
गुरुजी ने फल और सब्जियों में अनेक प्रयोग किये। उनके बाग में कई तरह के नींबू हैं। मुझे अलग-अलग प्रजाति के ढेर सारे नींबू पेड़ों पर लगे दिखे। वह कहते हैं कि उन्होंने स्वरोजगार को प्रोत्साहन देने के लिए यह बगीचा शुरू किया। सोचा, पलायन रुकेगा। ग्रामीणों को प्रेरित भी किया। कई पुरस्कार भी मिले। लेकिन पहाड़ में बाजार एक बड़ी समस्या है। उनके अनुसार मवालस्यूं माल्टा बेल्ट है, लेकिन यहां से बाजार दूर है। बाजार तक फल-सब्जी पहुंचाने के लिए भाड़ा ही इतना पड़ जाता है कि वहां उत्पाद बेचना घाटे का सौदा है। वह कहते हैं कि बागवानी और कृषि विभाग को कलस्टर बनाने चाहिए। बाजार मिले तो ग्रामीणों की आय भी होगी और स्वरोजगार को प्रोत्साहन भी मिलेगा।
पहाड़ में बाजार हो तो थपलियाल गुरुजी की मेहनत को मुकाम मिल सकता है। विडम्बना है कि नीति-नियतां गहरी नींद में हैं। उनको पहाड़ के लोग दोयम दर्जे के नागरिक लगते हैं। विकास का केंद्र देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और हल्द्वानी तक सीमित है। इस सबके बावजूद गुरुजी की अथक मेहनत और जज्बे को सलाम तो बनता है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
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