- यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बनाना कांग्रेस सबसे बड़ी गलती
- विधेयक पास दर पास होते रहे, नेता प्रतिपक्ष ध्यान लगाए आंखें मूंदे रहे
लोकतंत्र में दल-बदल एक सतत प्रक्रिया है। चुनाव से पहले कोई किसी भी दल में जा सकता है, आ सकता है। यह लोकतंत्र की खूबी भी है और कमजोरी भी। उत्तराखंड में दल-बदलू नेताओं की संख्या बहुत है। दरअसल, यहां के अधिकांश नेता नीयत से बहुत ही कमजोर और रीढ़विहीन हैं। यही कारण है कि राज्य गठन के 22 साल बाद भी उत्तराखंड में एक भी जननेता नहीं बन सका। सब दिल्ली के आकाओं और मौकापरस्त राजनीति के चलते सत्ता के घोड़े पर सवार हो जाते हैं।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य भी महान दल-बदलू नेता साबित हुए हैं। 40 साल कांग्रेस ने उन्हें ढोया, और जब उन्हें मौका मिला तो भाजपा में चले गये। 2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हरदा को जब लगा कि कांग्रेस उनको भावी सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं कर रही है तो उन्होंने एक पासा फेंका कि वह उत्तराखंड में सीएम की कुर्सी पर किसी दलित को देखना चाहते हैं।
उत्तराखंड का राजनीति इतिहास अब तक यही था कि एक बार कांग्रेस, एक बार भाजपा। यशपाल आर्य के मन में जरूर लड्डू फूटा होगा और वह अब तक के राजनीतिक समीकरण को देखते हुए मंत्री पद छोड़कर चुनाव से ऐन वक्त पहले कांग्रेस में शामिल हो गये। अपने आज्ञाकारी बेटे को साथ ले आए। बेटा हार गया लेकिन वह खुद जीत गये। कांग्रेस सत्ता से दूर रह गयी। प्रीतम सिंह को बढ़ती ताकत को कम करने के लिए हरदा ने चाल चली और यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बनवा दिया।
अब हरदा की यह चालाकी प्रदेश के लिए मुसीबत बन गयी है। यशपाल आर्य नेता प्रतिपक्ष के तौर पर दो कदम भी नहीं चल पा रहे हैं। शीतकालीन सत्र में वह मूक दर्शक बने रहे, मानो भाजपा की बी टीम के सदस्य हों। 14 विधेयक पेश हुए। संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल एक के बाद एक विधेयक पेश करते रहे और विधेयक पारित हो रहे। मजाल क्या है कि आर्य के मुंह से बोल फूटा हो। सदन में लगा ही नहीं कि विपक्ष के 19 विधायक हैं। 70 विधायकों के सदन में 19 विधायक यदि चाहें तो अपनी बुलंद आवाज से सदन की छत को हिला दें। मगर कुछ नहीं हुआ। वॉकआउट भी सांकेतिक हुआ। 619 सवाल थे। कितने सवालों के जवाब मिले? पांच दिसम्बर तक सत्र चलना था, क्यों नहीं चला। नेता प्रतिपक्ष ने विरोध नहीं जताया। चाहते ही नहीं थे। नेता प्रतिपक्ष ने साबित किया कि वह कितने कमजोर और लाचार हैं कि सत्ता पक्ष जब मर्जी, जैसे मर्जी उनका बैंड बजा दें।
डूब रही कांग्रेस को एहसास होना चाहिए कि उनसे भारी भूल हुई है। प्रीतम थोड़े समय के लिए नेता प्रतिपक्ष थे लेकिन उनका कार्यकाल यशपाल आर्य से बहुत बेहतर था। आर्य कांग्रेस का बेड़ा गर्क करने में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। कांग्रेस को दोबारा से उन पर विचार करना चाहिए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]