- कई डाक्टरों वर्षों से नदारद, विभाग नींद में
- स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की मुहिम चला रही सरकार
कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत मिल गये। कई अन्य लोग भी थे। कहने लगे कि कोई डाक्टर बताओ, मैं उसे सम्मानित करना चाहता हूं। मैंने तपाक से कहा, रमेश पोखरियाल निशंक को दे दो। तीन-तीन डिग्रियां हैं डाक्टर की। सब हंस पड़े। वह बोले, नहीं गंभीरता से ऐसा डाक्टर तलाश रहा हूं।
मजाक की बात अलग है, लेकिन गंभीर बात यह है कि स्वास्थ्य मंत्री को पूरे प्रदेश में एक ऐसा डाक्टर नजर नहीं आ रहा है कि जिसे सम्मानित कर सकें। यह विचारणीय बात है और पूरे महकमे की कार्यप्रणाली पर सवाल भी उठाती है। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं अकेले देहरादून और श्रीनगर में ही दर्जन भर डाक्टरों को जानता हूं जो इस सम्मान के हकदार हैं। गरीब लोगों में जो थोड़ा-बहुत डाक्टरों को लेकर सम्मान है वह इन्हीं डाक्टरों के कारण है। सरकारी अस्पतालों में कई डाक्टर बहुत ही समर्पित भाव से मरीजों की सेवा करते हैं। इस बीच सरकार ने भी एक अच्छा काम किया कि पर्वतीय क्षेत्रों में डाक्टरों का वेतन मैदान के डाक्टरों की तुलना में अधिक कर दिया है।
लेकिन एक दूसरा पहलू भी है। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार लगभग 100 डाक्टर ऐसे हैं जिनके बारे में विभाग को कुछ पता नहीं है कि वो हैं कहां? पीजी कर रहे हैं या निजी प्रैक्टिस। या उन्होंने कहीं और नौकरी ज्वाइन कर ली है। मसूरी में आयोजित मंथन में स्वास्थ्य सचिव डा. आर. राजेश कुमार जो रिपोर्ट पेश कर रहे थे, उसके इतर हालात यह भी हैं। डा. राजेश की छवि अच्छी है और वह पूरी ईमानदारी से व्यवस्थाओं को सुधारने में जुटे हैं। देखें, लापता डाक्टरों पर क्या कार्रवाई करते हैं? हो सके तो उनकी तलाश करें, उनसे रिजाइन करवाएं और उनकी जगह दूसरे डाक्टरों की तैनाती की जाए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]