बड़े दिलवाली ट्रांसजेंडर तेजस्या

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  • तेजस्या ने कहा, उन्हें भी चाहिए सम्मान से जीने का अधिकार
    दो बच्चों को लिया गोद, किन्नरों के लिए भी रोजगार की कर रही पैरवी

कल देर शाम को अचानक ही वाट्सएप पर एक वायस मैसेज आया। यह मैसेज ट्रांसजेंडर अजयपाल उर्फ तेजस्या का था। वह चाहती थी कि मैं उसकी बात उठाऊं। तेजस्या देहरादून की है और मौजूदा समय में हरियाणा में है। वह किन्नर समुदाय की परम्पराओं का अनुशरण कर रही है। उसकी कहानी बयां कर रहा हूं जैसे उसने मुझे बताया। उसके दर्द को समझने का प्रयास करें।
अजयपाल के माता-पिता उत्तराखंडी हैं। देहरादून के रायपुर में बड़ी बहन के बाद अजयपाल का जन्म हुआ तो परिवार संपूर्ण हो गया। सब कुछ थे कि बेटा और बेटी। पिता व्यवसाय करते और मां गृहणी। अजयपाल कुछ बड़ा हुआ तो उसका दाखिला स्कूल में करा दिया गया। जैसे-जैसे साल-दर साल बीते तो अजयपाल को एहसास होने लगा कि शरीर में बदलाव हो रहा है। उसे संशय होता कि लड़का है या लड़की। वह सोचता कि यदि मैं लड़का हूं तो लड़कों जैसा क्यों नहीं रहता? या लड़की हूं तो लड़की जैसे क्यों नहीं रहता?
ऐसे में वह शांत और एकांतप्रिय रहने लगा। पड़ोस के बच्चे और स्कूल में उसका मजाक उड़ाया जाता। वह और अधिक परेशान हो गया। एसजीजीआर स्कूल से उसने किसी तरह से दसवीं की परीक्षा दी। इसके बाद घर परिवार और पड़ोसियों ने सवाल उठाने शुरू कर दिये। अजयपाल और परेशान रहने लगा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसके शरीर में यह बदलाव क्या हो रहे हैं? परिवार के सदस्यों ने भी उससे दूरी सी बना ली। हालांकि बाद में परिवार उसे अपनाने के लिए तैयार हो गया लेकिन तब तक तो देर हो चुकी थी।
इस बीच किन्नर समुदाय के लोग आए उसने किन्नर समुदाय अपना लिया। अजयपाल तेजस्या बन गयी। वह कहती है कि उस समय उसकी उम्र महज 17 साल थी। जैसे कि किन्नरों के गुरु होते हैं तो उसको भी गुरु ने अपना लिया। तेजस्या के अनुसार चूंकि देहरादून उसकी जन्मभूमि थी तो परम्परा के अनुसार वह देहरादून में नेग नहीं ले सकती। वह कहती है कि यह परम्परा कैसे शुरू हुई नहीं पता। वह कहती है कि रायपुर में मेरी कालोनी में बहुत से लोग मुझे आज भी अपनाते हैं और कुछ घृणा भी करते हैं कि मैं किन्नर हूं। मेरा इसमें क्या कसूर? यह तो प्राकृतिक है। अब किन्नर समाज में आ गयी तो किन्नर समाज की परम्परा को निभा रही हूं। गुरु-शिष्या डेरा प्रथा को निभा रही हूं।
मैंने सवाल किया कि आप पढ़ी-लिखी हो तो अपने समाज के लिए क्या कर रही हो। तेजस्या ने बताया कि वह हाल में सीएम आवास गयी थी और उसने एक चिट्ठी सीएम के नाम भी दी कि किन्नर समुदाय के लिए सरकारी योजनाएं बनें। यदि उन्हें वोट देने का अधिकार मिला हुआ है तो उनके लिए स्कूल में अलग सीट की व्यवस्था हो। उनको नि:शुल्क शिक्षा मिले। अलग टायलेट हो। यदि बस या रेल में महिला या विकलांग सीट लिखी होती है तो उनके लिए भी अलग सीट हो। रोजगार के लिए भी व्यवस्था हो। आखिर ट्रांसजेंडर को भी तो सम्मान से जीने का अधिकार मिलना चाहिए। सरकार उनके हित में नीतियां क्यों नहीं बनाती।
तेजस्या के मुताबिक इस मामले को उसने पहले भी उठाया तो समुदाय के कुछ लोगों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया। उसके बाल काट दिये और उसे नंगा किया गया। तेजस्या के मुताबिक ट्रांसजेंडर बच्चों का बहुत उत्पीड़न होता है लेकिन कोई उनकी सुध नहीं लेता। वह चाहती हैं कि अपने देहरादून में उनके लिए कुछ रोजगार की व्यवस्था कर सके ताकि वह भी समाज में सम्मान से जी सकें। उसके अनुसार हमें भी आजादी चाहिए। उत्तराखंड में बहुत से बच्चे ट्रांसजेंडर हैं। आंकड़ों की बाजीगिरी होती है।
वह कहती है कि अवसर मिले तो कई ट्रांसजेंडर जज बन गये। कुछ पेरेंटस भी इन बच्चों को अपनाना चाहते हैं लेकिन कुछ किन्नर ऐसे हालात पैदा कर देते हैं कि अभिभावक तौबा कर लेते हैं। हालांकि कुछ किन्नर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और कुछ गंदा भी करते हैं। कुछ जज और इंस्पेक्टर बन रहे हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं कि जिनको सपोर्ट नहीं मिलता। मैं ट्रांसजेंडर के लिए कुछ करना चाहती हूं।
तेजस्या और उसके गुरु गरीब कन्याओं की शादी, मंदिर बनवाने, किसी गरीब का हास्पिटल का बिल अदा करने में मदद करते हैं। वह कहती है कि अब परिवार ने मुझे भी अपना लिया है। घर पर बड़े बाबूजी हैं और ताऊजी हैं। दीदी और उनके बच्चे हैं। अक्सर देहरादून आती हूं। मेरी बहन के दो बच्चे हैं। मैंने उन्हें गोद लिया है। ये एक निजी स्कूल में पढ़ रहे हैं। लड़की 12 और लड़का 10 साल का। जीजा सहारनपुर में किसान है। वह कहती है कि गुरुजी कमाई का कुछ हिस्सा हमें देते हैं। सबके अपने खर्चे होते हैं तो अपने हिस्से के उस खर्चे को मैं बच्चों पर खर्च कर रही हूं कि जो मैं नहीं बन पाई, मेरे बच्चे बन जाएं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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