- सरकार चाहती ही नहीं है रोग का स्थायी इलाज
- आयोग अध्यक्ष के चयन में इतनी जल्दी क्यों?
पूर्व आईजी जीएस मर्तोलिया को उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया है। मार्तोलिया जी को बधाई। वह एक अच्छे और ईमानदार पुलिस अधिकारी रहे हैं। केदारनाथ आपदा में उनका काम सराहनीय रहा है। इसके बावजूद मुझे लगता है कि उनका इस पद पर चयन जल्दबाजी है। आईजी मार्तोलिया खूब दावे करें, गरजें-बरसे, लेकिन सरकार ने उन्हें हाथी के दांत दिये हैं जो केवल दिखाने के होंगे। न तो पूर्व आईजी के पास कोई प्रतियोगी परीक्षा कराने का अनुभव है और न ही वह कोई साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट हैं कि कल परीक्षा आनलाइन हों तो नकलचियों को पकड़ सके। मेरे हिसाब से एक पूर्व पुलिस अधिकारी को एडजस्ट कर लिया गया है। इसके सिवाए कुछ भी नहीं। यह एक बहुत गलत परम्परा है।
दरअसल, आयोग को ऐसा अध्यक्ष चाहिए था जो कि आईआईएम से पासआउट हो। या मैनेजमेंट स्किल्ड का हो। या फिर कोई टेक्नोक्रेट जो दिमाग को चारों ओर नए सिरे से चुनौतियों को निपटाने के लिए दौड़ा सके। आयोग के पास गिने-चुने अधिकारी-कर्मचारी हैं और लाखों आवेदकों की भीड़ होती है। यह ठीक है कि आईआईएम पासआउट सरकार को महंगा पड़ेगा। लेकिन अभी स्नातक स्तरीय भर्ती में करीब 200 करोड़ का खेल हुआ। इसके मुकाबले में आआईएम पासआउट या मैनेजमेंट स्किल्ड लोग इस पद पर अधिक कारगर साबित होते।
आयोग को छोटी-छोटी परीक्षाएं करानी चाहिए। एक साथ कई विभागों के सैकड़ों पदों के लिए लाखों अभ्यर्थियों की परीक्षा करवाना आसान काम नहीं है। भर्ती परीक्षाएं प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा का सुझाव अच्छा है लेकिन इन दोनों परीक्षाओं का समयांतराल मायने रखेगा। नकल कानून को संज्ञेय अपराध बनाना होगा। रिश्वत देने वाले के खिलाफ भी कानूनी प्रावधान सख्त किये जाने चाहिए। आनलाइन परीक्षा के लिए केंद्र बनाने होंगे। परीक्षाएं आउटसोर्सिंग की बजाए अलग सरकारी एजेंसी बनाई जानी चाहिए। प्रिंटिंग प्रेस सरकारी होनी चाहिए। समयबद्ध और चरणबद्ध परीक्षाओं के लिए भर्ती कलेंडर जारी हो। पुलिस, वन विभाग आदि में वेट, हाइट, दौड़ का प्रावधान प्रारंभिक परीक्षा के बाद हो ताकि इसमें अनावश्यक समय न बर्बाद हो।
सरकार का मर्तोलिया को अध्यक्ष बनाने का फैसला जल्दबाजी है। सरकार ने फिलहाल परीक्षाओं के लिए लोक सेवा आयोग को जिम्मेदारी दी थी तो पूर्व आईजी मर्तोलिया को यह कमान जल्दबाजी में नहीं दी जानी चाहिए थी। उल्टे यह फैसला धामी सरकार के लिए मुसीबत बन जाएगा। इस पोस्ट पर पूर्व आईएएस या आईएफएस रहे हैं। इस फैसले से आईएएस-आईपीएस लॉबी में टकराव और बढ़ेगा। सीएम धामी के ओएसडी भी आईपीएस है जो कि आईएएस लॉबी को बिल्कुल नहीं भा रहा है। निश्चित ही नौकरशाही में और टकराव बढ़ेगा जो कि राज्यहित में कतई नहीं है। नौकरशाह पहले ही काम करने के लिए तैयार नहीं हैं और यदि टकराव बढ़ा तो विकास कार्य प्रभावित होंगे। सरकार को चाहिए था कि वह रोग का अस्थायी इलाज करें। देखें अब पूर्व आईजी क्या करते हैं?
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]