बेटियां तो ऐसी ही होती हैं, छोटी=सी उम्र में बहुत बड़ी हो गयी ‘रिमझिम‘

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  • अक्सर त्याग बेटियां ही करती हैं क्योंकि वो पिता को समझती हैं!

कल राजपुर रोड स्थित राजपुर बालिका इंटर कालेज में गया था। वहां जिलास्तरीय क्विज प्रतियोगिता चल रही थी। इसके आयोजक थे शैलेष मटियानी पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सुशील राणा और देवानंद देवली। यह एक अच्छा प्रयास है कि सरकारी स्कूलों के बच्चों का सामान्य ज्ञान बढ़ाने का। कुछ देर हाल में बैठकर बाहर निकल आया। स्कूल की सीढ़ियां उतरते हुए मुझे एक लड़की दिखाई दी, जिसकी ड्रेस पर बैच लगा था ‘अध्यक्ष‘। उत्सुकतावश मैंने उसे रोक लिया।
गोल-मटोल सी। करीने से बंधी दो चोटियां और स्कूल ड्रेस से मैचिंग रिबन। जब मैंने रोका तो उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में सवाल तैरने लगा कि क्यों रोका? मैंने पूछा, क्या तुम स्कूल की हेडगर्ल हो। उसने कहा, जी। मैंने सवाल किया, क्या नाम है। जवाब मिला रिमझिम। उसकी आवाज खनकती सी है, बेहद प्यारी। मैंने अगला सवाल किया, किस क्लास में हो? 11वीं में। कौन से विषय, ह्युमैनिटीज। अध्यक्ष का क्या काम होता है? सुबह प्रार्थना करवाना, स्टूडेंट की शिकायतों को सुनना, यदि अनुशासन तोड़ रहे हों तो उनको चेतावनी देना। झगड़ों आदि का निपटारा भी। यह बालिका विद्यालय पूरी तरह से स्मार्ट है।
रिमझिम ने इसी वर्ष स्कूल में दाखिला लिया है। इससे पहले वह दूनवैली स्कूल में पढ़ती थी। आईसीएससी पैटर्न से पढ़ी है। 10वीं में उसके 80 प्रतिशत अंक थे और कामर्स विषय था। अंग्रेजी से हिन्दी माध्यम आने से दिक्कत नहीं होगी? वह कहती है, जब मैंने स्कूल ज्वाइन किया तो पहले हफ्ते लगा कि यह मुझसे नहीं होगा। फिर स्कूल की टीचर मदद को आगे आईं। टीचर्स ने रिमझिम को कहा है कि वह अंग्रेजी में ही पढ़ाई जारी रखें। कुछ टीचर्स रिमझिम की मदद कर रही हैं। स्कूल में स्मार्ट क्लासेस हैं तो यू-टयूब भी मददगार साबित हो रहा है। रिमझिम कहती है कि टीचर्स ने कहा है कि सभी को प्रश्नपत्र हिन्दी मीडियम में मिलेगा लेकिन उसके लिए अंग्रेजी प्रश्नपत्र की व्यवस्था की जाएगी।
दरअसल, रिमझिम के साथ यह नौबत इसलिए आई कि उसके पिता एक पेस्ट कंट्रोल कंपनी में काम करते हैं। उसके दो छोटे भाई भी हैं जो दूनवैली में ही पढ़ रहे हैं। तीन-तीन बच्चों की स्कूली फीस देने में दिक्कत हो रही थी। रिमझिम ने बताया कि फीस अक्सर लेट हो जाती। वह कहती है कि दून वैली स्कूल के टीचर्स ने भी मदद की, लेकिन कब तक? दसवीं करने के बाद पिता ने मजबूरी बतायी तो रिमझिम त्याग करने के लिए तैयार हो गयी। मैंने पूछा कि पिता को कहा नहीं कि मैं ही क्यों सरकारी में पढ़ूं, भाई क्यों नहीं? गंभीर सी और दबी आवाज में रिमझिम ने बोला कि एक बार मन में यही बात आई, लेकिन पिता की मजबूरी देख चुप हो गयी। रिमझिम के चेहरे पर हल्की सी उदासी आई और गई। वह मुस्करा कर बोली, मैं दसवीं कर चुकी हूं और भाई छोटे हैं।
दरअसल रिमझिम सभी बेटियों का प्रतिनिधित्व कर रही है। अक्सर जब त्याग करना होता है तो बेटियां ही आगे आ जाती हैं। बेटियां तो ऐसी ही होती हैं, त्याग करने वाली, पिता को समझने वाली। रिमझिम के इस त्याग और उन टीचर्स को सैल्यूट जो इस बेटी के सपनों को साकार करने में मदद कर रही हैं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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