हरदा का यह रूप खतरनाक है

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  • जनमुद्दों पर चुप्पी और धर्म के मुद्दे पर मौन व्रत
  • जनविरोधी नीतियों पर पक्ष-विपक्ष एकजुट हो जाते हैं

इस बार कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत के लिए राजनीति संभवतः करो या मरो की है। पेनाल्टी शूटआउट में हरदा कोई भी दाव नहीं छोड़ना चाहते हैं। ऐसे में उन्होंने धर्म को भी हथियार बना लिया है। भले ही वो तर्क दे रहे हों कि उनके साथ खेल हो सकता है। संभवतः यह बात सही भी हो लेकिन इस आशंका को व्यक्त करने का तरीका निश्चित तौर पर गलत है। दो दिन तक राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के साथ मुस्लिम टोपी को लेकर युद्ध चला। अब जागेश्वर धाम में यूपी के सांसद के खिलाफ मौन व्रत किया। उधर, भाजपा पहले ही धर्म और राष्ट्रवाद का कार्ड खेलकर ही सड़क से सत्ता की चौखट तक पहुंची है। अब इन दलों को लगता है कि असल मुद्दा स्वास्थ्य, रोजगार, हिमालय, शिक्षा नहीं बल्कि धर्म और राष्ट्रवाद है। जनहित के मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष एकजुट होकर चुप्पी साध लेते हैं।
हाल में प्रदेश में दो घटनाएं घटी। ऋषिकेश-श्रीनगर मार्ग पर तोताघाटी में प्रवक्ता मनोज सुंदरियाल की कार पर बोल्डर गिरा और उनकी मौत हो गयी। दूसरी घटना वनरक्षक पद के लिए 25 किलोमीटर की दौड़ में चमोली के सूरज प्रकाश की मौत हो गयी। मनोज की मौत के लिए जिम्मेदार तोता घाटी में चारधाम यात्रा मार्ग को गैर-जरूरी तौर पर चौड़ा करने के लिए पिछले एक साल से लगातार पहाड़ खोदे जा रहे हैं। इससे पहाड़ अस्थिर हो गये हैं। आज भी आलवेदर रोड पर कदम-कदम पर खतरा बना है। भूस्खलन हो रहा है, 80 से भी अधिक डेंजर जोन बन चुके हैं। लेकिन विपक्ष मनोज सुंदरियाल की मौत और प्रकृति के साथ इस छेड़छाड़ पर मौन है। प्रवक्ता मनोज की मौत मुद्दा नहीं बनी। शायद इसका कारण यह है कि कांग्रेस और भाजपा के अधिकांश नेता रजिस्टर्ड ठेकेदार हैं। उन्हें भय लगता है कि सरकार किसी की भी हो, ठेके लेने तो सरकार के पास ही जाना होगा।
दूसरी घटना भी विचित्र है। लोक निर्माण विभाग के बाद वन विभाग भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा है। उपखनिजों की चोरी, जंगल की लकड़ी चोरी, कागज पर करोड़ों के पौधे लगाने समेत भ्रष्टाचार इस विभाग में होता है। शायद इसलिए कि यहां सबसे मुश्किल से नौकरी मिलती है। सभी को 25 किलोमीटर की दौड़ लगानी होती है। सूरज की जान इसी दौड़ ने ली। लेकिन किसी भी दल ने इसे मुद्दा नहीं बनाया। जनविरोधी नीतियों पर पक्ष-विपक्ष एक हो जाते हैं। कांग्रेस काल में हुए घोटालों पर भाजपा सरकार जांच नहीं करती और भाजपा सरकार में हुए घोटालों पर कांग्रेस। दोनों दलों में घोटालों और भ्रष्टाचर पर मूक समझौता है।
दरअसल, हिमालय राज्य होने के बावजूद यहां वन, पर्यावरण और हिमालय कभी राजनीतिक मुद्दे नहीं बने। भू-कानून भी कोई मुद्दा नहीं बनेगा। क्योंकि प्रदेश में सारा खेल तो जमीनों पर ही है। ग्राम प्रधान, वार्ड मेम्बर, पार्षद, विधायक या मंत्री सब जमीनों के खेल में शामिल हैं। मेरा दावा है कि प्रदेश के 90 फीसदी नेता ठेकेदारी और प्रापर्टी डीलिंग या जमीनों को खुर्द बुर्द कर देते हैं। जागो पहाड़ियो, जागो।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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