- कृषि मंत्री गणेश जोशी के जर्मनी दौरे से लगभग 43 लाख की चपत
- नेताओं के साथ दमयंती रावत, विनय कुमार और हिमानंद सेमवाल की मौज
कृषि मंत्री गणेश जोशी हाल में जर्मनी, स्वीटजरलैंड, फ्रांस और इटली की यात्रा पर गये थे। उनके साथ 6 विधायकों समेत 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल था। इन पर लगभग 43 लाख रुपये खर्च हुए। रिजल्ट पर अगली पोस्ट में बात करूंगा। लेकिन अभी यह बता दूं कि पिछले 10 साल में भाजपा और कांग्रेस के विधायकों ने खेती के नाम पर खूब विदेश यात्राएं की। इधर, प्रदेश की एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक कृषि भूमि बंजर होती रही, उधर, नेता आर्गेनिक फार्मिंग और फार्मिंग के नाम पर विदेशों में मजे लूटते रहे। यह भी बता दूं कि पिछले दस साल के इन दौरों के बावजूद उत्तराखंड में संभवत जैविक उत्पादों की ग्रेडिंग भी नहीं हो सकी है। मजेदार बात है कि सभी नेताओं को खेती की याद जर्मनी में आई। हर बार जर्मनी दौरे पर गये। सीखा क्या, यह अलग रिपोर्ट।
मैंने गणेश जोशी के विदेश दौरे को लेकर कई विभागों में धक्के खाए। अब उत्तराखंड स्टेट सीड़ एंड आर्गेनिक प्रोडक्शन सर्टिफिकेशन एजेंसी यानी यूएसएस एंड ओपीसीए ने मुझे मांगी गयी आधी-अधूरी जानकारी दी है। इसमें एक बिंदु था कि विदेश दौरों से प्रदेश को क्या लाभ मिला। इस बिन्दु पर कहा गया कि सूचना धारित नहीं है।
खैर, बात दस साल के विदेश दौरों की। मई 2018 में सीएम त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व में इस्रराइल में आयोजित एग्री फेस्ट में सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल गया। संभवत भांग का आइडिया वहीं का होगा। फरवरी 2018 में सुबोध उनियाल और 8 सदस्यीय टीम जर्मनी गयी। 2017 में बायोफैच फेयर के नाम पर प्रीतम सिंह, मुन्ना सिंह चौहान, काजी निजामुद्दीन समेत विभाग के अधिकारी गये। यह ध्यान रखें कि एजेंसी के विनय कुमार, हिमानंद सेमवाल और दमयंती बार-बार विदेश गये।
मार्च 2015 में जर्मनी के दौरे पर हरक सिंह रावत, तिलकराज बेहड़, सुदर्शन, दमयंती रावत और हिमानंद सेमवाल गये। 2014 में भी दमयंती रावत और 6 सदस्यीय टीम जर्मनी दौरे पर गयी। इसमें हिमानंद सेमवाल भी थे। 2013 फरवरी में जर्मनी दौरे पर हरक सिंह और प्रीतम सिंह के अलावा हरबंस कपूर, मदन बिष्ट, विजयपाल सजवाण और कृषक प्रतिनिधि के तौर पर रणजीत रावत भी गये। 2012 में बायोफैच फेयर के नाम पर टोक्यो यानी जापान में हरक सिंह रावत चेयरमैन के तौर पर और उनके साथ दमयंती रावत और हिमानंद सेमवाल गये।
पहाड़ के बंजर होते खेतों और यहां के बदहाल किसानों की यह एक लंबी और दुखभरी कहानी है। इस कहानी के कई भाग हैं। जो मैं समय-समय पर प्रकाशित भी करूंगा और सोशल मीडिया पर शेयर करता रहूंगा। फिलहाल, यह जान लो, कि उत्तराखंड में पक्ष और विपक्ष दोनों ही मौज कर रहे हैं और जनता धर्म के नशे में मदहोश है। आर्गेनिक खेती की कहानी जारी रहेगी। इस बार सीड एजेंसी के एमडी, डायरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर को मेरे आसान से सवालों के जवाब देने होंगे। लेकिन विश्वास कीजिए मैं इन लोगों से यह नहीं पूछूंगा कि आम कैसे खाते हैं, चूसकर या काटकर। मैं जल्द ही इन महानुभावों से साक्षात्कार करूंगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]