- देश में कहीं नहीं राजस्व पुलिस, पांच दिनों तक खुले घूमते रहे अंकिता के हत्यारे
- यदि सिविल पुलिस होती तो संभव है कि बच जाती अंकिता की जान!
भाजपा नेता व पूर्व दर्जाधारी विनोद आर्य का बेटा पुलकित आर्य अंकिता भंडारी मर्डर केस में आरोपी है। 19 वर्षीय अंकिता भंडारी ऋषिकेश के वनंत्रा रिजॉर्ट में काम करती थी और 18 सितम्बर से लापता थी। 19 सितम्बर को परिजनों ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट राजस्व पुलिस को दी। राजस्व पुलिस ने इस मामले में कोताही बरती और पांच दिन के बाद यह मामला सिविल पुलिस को दिया गया। सिविल पुलिस ने पुलकित और दो अन्य को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन अब तक अंकिता की लाश बरामद नहीं हो सकी है। वह नहर में फेंक दी गयी थी। यदि समय से पता चलता तो संभव है कि अंकिता बच जाती या उसकी लाश को तुरंत बरामद किया जा सकता था। विडम्बना यह है कि ऐसा नहीं हुआ।
उत्तराखंड पुलिस के एक वरिष्ठ पूर्व आईपीएस अफसर ने कहा कि प्रदेश की पुलिस को मार्डनाइजेशन करने के लिए प्रयास किये गये, लेकिन राजस्व पुलिस की व्यवस्था सरकार को खत्म करनी चाहिए। सिविल पुलिस प्रोफेशनल होती है। यदि जांच समय से होती तो हत्यारे पांच दिन तक खुले नहीं घूम रहे होते। उनके अनुसार सरकार अध्यादेश लाकर राजस्व पुलिस की व्यवस्था को समाप्त कर सकती है।
गौरतलब है कि राजस्व पुलिस की व्यवस्था अंग्रेजों ने 1861 को की थी। अंग्रेज पर्वतीय जिलों में अधिक खर्च नहीं करना चाहते थे, इसलिए यह व्यवस्था की थी। पटवारी, कानूनगो को ही पुलिस का काम सौप दिया। आईपीसी के आरोपियों की गिरफ्तारी व उन्हें जेल भेजने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होती है। आज की तारीख में भी प्रदेश के आधे से अधिक इलाके में यही व्यवस्था लागू है।
सूत्रों के मुताबिक राजस्व पुलिस को कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी पूरे देश में उत्तराखंड के अलावा कहीं नहीं हैं। उत्तराखंड में राजस्व क्षेत्र के तकरीबन 8 हजार गांव राजस्व पुलिस के पास ही है, जिन्हें रेगुलर पुलिस से जोड़ने के लिए 68 थाने और 104 पुलिस चौकियां स्थापित की जानी है, तो वहीं कुल 58 प्रतिशत क्षेत्र का एक तिहाई आबादी वाला क्षेत्र बिना किसी खर्च के रेगुलर पुलिस से जोड़ा जा सकता है। जिसके सम्बन्ध में भी शासन को प्रस्ताव भेजा था।
यह भी बता दूं कि 12 जनवरी 2018 को नैनीताल हाईकोर्ट के जस्टिस राजीव शर्मा और आलोक सिंह की खंडपीठ ने राजस्व पुलिस को तफ्तीश व कार्रवाई में विफल बताते हुए पूरे प्रदेश को सिविल पुलिस व्यवस्था के तहत लाने का आदेश दिया था। नैनीताल हाईकोर्ट ने टिहरी जनपद के दहेज हत्या के एक मामले की सुनवाई करते हुए राजस्व पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े किये और राज्य सरकार को छह महीने के अंदर इस व्यवस्था को खत्म करने के निर्देश दिये। वर्ष 2013 में केदारनाथ व प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में आई आपदा के दौरान भी राजस्व पुलिस की कार्यशैली व क्षमता पर सवाल खड़े हुए थे और सरकार ने क्रमिक रूप से इस व्यवस्था को खत्म करने और उसके स्थान पर सिविल पुलिस का दायरा बढाने की नीति बनाई थी।
इस संबंध में कई बार डीजीपी अशोक कुमार से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन वह टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हुए। डीजीपी से राजस्व पुलिस को लेकर जल्द ही बात करने की कोशिश करूंगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
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