- हर साल लापता हो रही हैं 600 लड़कियां
- अंकिता को जल्द तलाशे पुलिस
ऋषिकेश के एक रिजार्ट में काम करने वाली 19 साल की अबोध अंकिता भंडारी लापता है। परिजन परेशान हैं और रिजार्ट संचालक भी लापता है। यह रिजार्ट भाजपा के किसी नेता बताया जा रहा है और नेता पुत्र भी लापता है। पांच दिन हो गये और पुलिस को पता नहीं लग रहा है कि अंकिता है कहां? मामला अब रेग्युलर पुलिस कर रही है।
अंकिता के बहाने मैं यह बात बताना चाहता हूं कि एंटी ह्यूमैन ट्रैफिकिंग पर काम करने वाली कई संस्थाओं ने चौंकाने वाली जानकारी दी है कि हर साल उत्तराखंड से 600 लडकियां लापता हो जाती हैं। अधिकांश में या तो पुलिस मामला दर्ज नहीं करती कि लड़की भाग गयी होगी किसी के साथ या फिर अभिभावक ही लोकलाज में चुप्पी साध लेते हैं कि बेटी गई कहां? समाज क्या कहेगा? यह प्रवृत्ति बहुत खतरनाक है। लव-जिहाद भी एक बड़ा कारण है। पुलिस के पास कम ही केस दर्ज होते हैं।
जानकारी के अनुसार पहले पहाड़ों से लड़कियां भगाई जाती थीं, लेकिन अब तरीका कुछ बदला है। बाहर से आए लोग बकायदा लड़की से शादी करते हैं और फिर उसका जीवन पर्यंत पता नहीं चलता कि वह गई कहां? पर्वतीय जिलों में ऐसी घटनाएं आए दिन हो रही हैं। बहुत कम लोग ही अपने बच्चे की तलाश करते हैं। पुलिस भी अधिकांश मामलों में दौड़-भाग से बचती है। चम्पावत में ह्यूमैन ट्रैफिकिंग सेल बना है, लेकिन यह नेपाल से आने वाली लड़कियों पर नजर रखता है।
प्रदेश में एंटी-ह्यूमैन ट्रैफिकिंग सेल को हर जिले में बनाये जाने और इस मामले को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। पिथौरागढ़ और चम्पावत जैसे सीमावर्ती इलाकों में ड्रग्स बहुत तेजी से युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। कई छात्र पैडलर बन गये हैं और लड़कियां भी ड्रग्स एडिक्ट। नशे की हालत में कहीं भी कुछ भी हो सकता है।
सावधान रहें, अपने बच्चों पर शक न करें, लेकिन उनके व्यवहार और गतिविधियों पर नजर रखें। यदि आपका बच्चा 23 साल से कम उम्र का है तो बच्चे के मोबाइल को भी क्रास चेक करें। इसमें कोई बुराई नहीं, न ही निजता का उल्लंघन है।
पुलिस को एक टास्क फोर्स बनाने की जरूरत है। महिला आयोग और बाल संरक्षण आयोग को इस मुद्दे को गंभीरता से उठाने की जरूरत है। बाल आयोग की पूर्व अध्यक्ष ऊषा नेगी ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए तो थे, लेकिन अब क्या हो रहा है पता नहीं। पर्वतीय जिलों के स्कूलों में ड्रग्स और मानव तस्करी को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। सामुदायिक सहयोग भी लिया जा सकता है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]