- नेता बैक डोर से भर्ती करे तो नियमानुसार, शीतल करें तो भ्रष्टाचार
- बनी महिला सशक्तीकरण की मिसाल, शैलेष मटियानी पुरस्कार की हकदार
अपनी सरकार प्रदेश में सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए ताणी मार रही है। दसवीं और बारहवीं में फेल 48 हजार छात्रों को पास करने के बैक डोर प्रयास कर रही है, ताकि रिजल्ट में सुधार हो सके। पता नहीं सरकार ऐसा प्रस्ताव कब लाएगी। मैं तो कहता हूं कि यह नौबत ही क्यों आए? बोर्ड परीक्षाओं में नकल के लिए आरक्षण व्यवस्था हो। कमजोर छात्रों को इतनी नकल करनी दी जाए कि वह पास हो जाएं। इनविजिलेटर को सख्त निर्देश दिये जाने चाहिए कि यदि उनकी कक्षा में कोई फेल हुआ तो कार्रवाई होगी। आखिर सरकार की इज्जत का सवाल है। 2025 तक फेल छात्रों के साथ कैसे बनेगा काम। 2025 तक प्रदेश को सबसे अग्रणी बनाना है। शिक्षा में पिछड़े कैसे रह सकते हैं?
अटल उत्कृष्ट स्कूलों में जमे शिक्षकों का शिक्षा में सुधार में अहम योगदान है। उन्हें भले ही अंग्रेजी नहीं आ रही हो, लेकिन ताणी मार कर सीख रहे हैं। हिन्दी में अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं। बाकी जो बहुत अच्छे शिक्षक हैं वो हल्द्वानी या देहरादून में प्रापर्टी डीलिंग कर रहे हैं। उनसे भी अच्छे शिक्षक नेताओं के घर माली-धोबी का काम कर रहे हैं। गांव से बदरी गाय का घी, ककड़ी-मुंगरी लाकर अस्थाई राजधानी देहरादून में स्थायी तौर पर बसे नेताओं के घर पहुंचा रहे हैं। भाभीजी खुश तो नेताजी भी खुश।
राजीव नवोदय स्कूल के गरीब विद्यार्थियों को भला आसमां छूने के सपने क्यों दिखाएं जाएं। अमीर की वैल्यू ही तब है जब प्रदेश में गरीब हों? वरना अमीर को अमीर कौन कहेगा? सो सरकार ने नायाब तरीका निकाला है। देहरादून के राजीव नवोदय का हाल देखो। एसईआरटी, ओपन यूनिवर्सिटी, वर्चुअल क्लासेस और अब सैनिक स्कूल। सारे परीक्षण यहां कर डाले हैं ताकि सरकार को नया संस्थान खोलने की मशक्कत ही नहीं करनी पड़े।
इधर, नेता अपने रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में फिट कर रहे हैं। देश और प्रदेश में नौकरी का भारी संकट है। ऐसे में पौड़ी के थैलीसैंण ब्लाक की बग्वाड़ी स्थित सरकारी स्कूल की अस्थाई प्रिंसिपल शीतल रावत ने रोजगार की दिशा में अहम त्याग किया है। अपनी जगह गांव की भोली-भाली मधु रावत को कहा, बहन, तू बन जा प्रिंसीपल। जला इल्म की शमां। बन जा सशक्त। बताओ, शीतल ने क्या बुरा किया? गांव की एक बेरोजगार को काम दे दिया। वैसे भी शिक्षक गांव में बच्चों को पढ़ाते कहां हैं? वेतन 90 हजार है और उसमें से मधु को हर माह 2500 देती है तो क्या बुरा करती है। गांव में इतना काफी है मधु के लिए। रोजगार तो मिला। शीतल के इस महान त्याग को याद रखा जाना चाहिए। मैं तो कहता हूं कि इस बार नियमों को तोड़ते हुए सरकार को शीतल रावत को शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठाने के लिए राज्य गठन के दिन शैलेष मटियानी पुरस्कार देना चाहिए।
आखिर आज के दिन जब सब अपने रिश्तेदारों को नौकरियां दे रहे हैं तो शीतल ने ग्रामीण लड़की को रोजगार दिया। उसे सशक्त बनाने में मदद की, तो क्या बुरा किया?
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]