- तुम खुद बनो अपनी आवाज, बुलंद करो और सत्ता के कान फोड़ डालो
- नई पौध उग रही, खाद डालो, सींचो, फसल लहलहाएगी, तुम देखना
धाकड़ पस्त, भ्रष्ट और बेईमान मस्त। विधायकों के मुंह में दही जम गयी है। सब मौसेरे भाई हैं। विधायकों का पता है कि क्यो बोलेंगे? जो पहले ठेकेदार थे, वही विधायक बन गये हैं। इन कमीशनखोर विधायकों की नसों में भला ईमानदारी का खून कहां से दौड़ेगा जो जनता के हित की बात बोलेंगे।
कभी सोचा, इतने घोटाले होने पर भी विधायक चुप क्यों हैं? कोई कुछ नहीं बोल रहा, क्यों मौन हैं? सारे देश में प्रदेश की थू-थू हो रही है और नेता विदेशों में मौज करने जा रहे हैं। यह बेशर्मी क्यों? क्या इन्हें भय नहीं है? हां, नहीं है। इसलिए चोरी कर भी सीनाजोरी हो रही है। इसका एक सीधा और आसान जवाब है बिकी हुई जनता की कोई कीमत नहीं होती। जनता गुलाम है और नेता मालिक।
इसकी कहानी संक्षिप्त में सुनिए। 2002 में तिवारी सरकार आई। ठेकेदारों ने नेताओं को चुनाव लड़ने के पैसे दिये। नेताओं ने ठेकेदारों को और ठेके दिये। यूपी काल में गिने-चुने ए ग्रेड ठेकेदार थे। अब लंबी फौज है। 2007 के चुनाव में नेताओं ने फिर ठेकेदारों से चुनाव लड़ने के लिए पैसे लिए। अब तक ठेकेदार थोड़ा राजनीति समझने लगे कि जब जनता वोट बेच रही है तो नेताओं को पैसे क्यों दें? क्यों न ये वोट हम ही खरीद लें।
बस फिर क्या था 2012 के चुनाव में आधे से अधिक ठेकेदार विधायक बनकर विधानसभा पहुंच गये। तब से इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। विधायकों को पता है कि पहाड़ के विधानसभा क्षेत्र छोटे हैं। महज 30 हजार वोट पर भी जीत हो सकती है। 30,000 गुणा 500 रुपये का गुणा-भाग कर चुनाव जीता जा सकता है। यानी डेढ़ करोड़ से पांच करोड़ तक खर्च कर विधायक बना जा सकता है। एक विधायक का हर काम में कमीशन तय माना जाता है। ऐसे में वह पहले दो साल चुनाव में खर्च हुए पैसे की वसूली करता है। बाद के दो साल अगले चुनाव के लिए धन जुटाता है और फिर एक साल में जनता की आवाज झूठ-मूठ उठाने की कोशिश करता है। क्षेत्र के विकास की याद पांचवें साल में आती है।
दोष जनता का है। अब समय है सुधर जाओ जनता। वरना, तुम्हारी पीढ़ियां यूं ही भुखमरी और बेरोजगारी के कगार पर रहेंगी। नई पौध उग रही है, इसे सींचों, खाद डालो, इसकी परवरिश ढंग से करो। देखना, नई फसल लहलहाएगी। कमर कस लो। लड़ो, अपने वजूद के लिए, भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]