- पिछले 47 साल से दून में ज्योतिष विद्या से कमा रहे रोटी
- पंडित जी बोले, फुटपाथ सभी का, अमीर का भी, गरीब का भी
देहरादून के गांधी पार्क। शाम के लगभग सवा छह बजे हैं। गेट की दाईं ओर फुटपाथ पर एक एल्मुनियम का बक्शा रखा है। उसके बाहर एक पट्टी पर लिखा है ग्रह बोलते हैं। बक्से के ऊपर स्लेट पर ग्रह-नक्षत्रों का खाका खींचा हुआ है। कुछ अन्य कागजात भी रखे हैं। बगल में टिफिन बाक्स है और कुछ मुड़े-तुड़े अखबार। दो प्लास्टिक और एक लकड़ी का स्टूल हैं और पार्क की बाउंड्री पर एक फ्लैक्स टंगा है, आइए और अपने भाग्य का हाल जानिए। लकड़ी के स्टूल में ज्योतिष पंडित महेंद्र दत्त जोशी बैठते हैं और इस पर बैठकर जजमानों का भाग्य बांचते हैं।
69 वर्षीय पंडित महेंद्र जोशी यहां पिछले 47 साल से लोगों का भविष्य बांच रहे हैं। वह बताते हैं कि मूल रूप से वह हल्द्वानी निवासी हैं। उस जमाने में दसवीं तक पढ़े। ज्योतिष का विधिवत ज्ञान विरासत में मिला था। हंसते हुए बताते हैं कि पिता की ज्योतिष संबंधी बातें सुनते थे। ग्रहों के चक्कर और हाथों की लकीरें पढ़ना सीख गये। 22 साल की उम्र में वर्ष 1975 में देहरादून आ गये। वह गेट के पास इशारा करते हैं कि यहां पीपल का पेड़ होता था। चबूतरा बना था, वह वहां बैठते थे। गर्मी में लोग पसीना पोंछने उस पेड़ के नीचे आते थे। लेकिन वह पेड़ बारिश की भेंट चढ़ गया। जब उन्होंने यहां ज्योतिष कार्य की शुरुआत की तो फीस चार आने रखी। मैंने उत्सुकता से पूछा अब, 151 रुपये। हाथ दिखाने के 101 रुपये। पंडित महेंद्र गर्व से बताते हैं कि उनके बहुत जजमान हैं। आफिस क्यों नहीं लिया? हंसते हुए बोले, आफिस में सामान्य लोग जाने से झिझकते हैं। फुटपाथ पर कोई भी गरीब या सामान्य आ जाता है। स्कूटी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि एक जजमान ने यह भेंट में दी। मैंने हौले से पूछा, रोज कितना कमा लेते हो। बोले प्रभु इच्छा, किसी दिन व्यारे-न्यारे तो कोई दिन सूखा। आज कितना कमाया, तीन जजमान आए।
पंडित जी सुबह साढ़े दस बजे यहां आ जाते हैं और शाम साढ़े सात बजे लोहिया नगर स्थित अपने घर जाते हैं। बच्चे कितने हैं? पहले तो हंसे फिर बोले बहुत हैं। मैंने कहा, बताओ तो। नौ, सात बेटे और दो बेटियां। पांच बेटे अधिक नहीं पढ़े, लेकिन दो अब भी पढ़ रहे हैं। ग्रेजुएशन कर रहे हैं। मैंने उन्हें पढ़ने से रोका नहीं। मैंने सातों बेटों को एक-एक कमरा दिया है। पोते-पोतियां, पंडित जी कुछ गणना करने लगते हैं फिर कहते हैं, 11 पोते-पोतियां हैं और चार नाती-नातिन।
मैंने पूछा, जब आप घर जाते हैं तो पोते-पोतियां इंतजार करते होंगे कि दादा, क्या लाए। यह सुनते ही पंडित जी की आंखों में अपने पोते-पोतियों के लिए असीम प्यार के बादल उमड़-घुमड़ आए, चेहरे पर लंबी सी मुस्कान लिए बोले, हां, फिर कुर्ते की जेब में हाथ डालते हैं, मुट्ठी खोलते हैं तो उनकी हथेली पर नजर आती हैं हरे रंग के रैपर में लिपटीं टाफियां। मैं भी हौले से मुस्करा देता हूं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]