- सफलता के शिखर पर होते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़े रहना है देशभक्ति
- डा. जयंत नवानी का जीवन देशभक्ति और माटी से प्रेम का प्रतीक
कल धर्मपुर से तहसील की ओर जा रहा था तो देखता हूं कि डा. जयंत नवानी अपने दून नर्सिंग होम परिसर में खड़े छत की ओर निहार रहे हैं। उत्सुकता से मैं उनके पास गया। अस्पताल की खूब ऊंची छत पर उनके कर्मचारी तिरंगा फहरा रहे थे। लेकिन डा. नवानी संतुष्ट नहीं थे। नीचे से चिल्लाए, और ऊंचा लहराओ। उनकी यह देशभक्ति देख मन गदगद हो गया। तिरंगा खूब ऊंचा फहराना चाहते हैं। ठीक भी है, उनका जीवन आदर्श है। चौथी कक्षा तक पौड़ी स्थित अपने गांव की स्कूल में पढ़े 72 वर्षीय डा. नवानी ने पलायन की पीड़ा झेली। खूब मेहनत की और डाक्टर बन गये। हिन्दी से अंग्रेजी सीखने में पसीने छूटे लेकिन हार नहीं मानी। नतीजा, डाक्टर बने तो ईरान बार्डर के अस्पताल में नौकरी मिली। आर्थो सर्जन के तौर पर ईरान-इराक युद्ध की विभीषिका को देखा। देखा, किसी सैनिक की टांग पूरी तरह से उड़ गयी है तो किसी का शरीर ही फंची में बटोरना पड़ रहा है। युद्ध सर्वनाश लाता है देश का भी और समाज का भी।
ओमान में शाही नौकरी की। लेकिन सीने में धड़कता दिल पहाड़ बुलाता रहा। वतन लौटे तो देहरादून को कर्मस्थली बना लिया। दून नर्सिंग होम देहरादून का पहला मल्टीस्पेश्यलिटी हॉस्पिटल है। यह बात अलग है कि यह अस्पताल वक्त की होड़ में पीछे छूट गया, कयोंकि डा. नवानी को दुनियादारी समझ में ही नहीं आई। डा. नवानी आज भी गिने-चुने मरीजों को देखते हैं, लेकिन इनमें से गिने-चुने ही उनको फीस देते हैं। इस फीस को भी वह जरूरतमंदों और सामाजिक सरोकारो पर खर्च कर देते हैं। कई गरीब बच्चों की फीस, मरीजों के इलाज का खर्च, मंदिरों-गुरुद्वारा में धार्मिक कार्यों में सहयोग और सबसे बड़ी बात अपने गांव अपने पहाड़ से जुड़े रहना। वह निरंतर गांव जाते हैं और वहां न केवल मेडिकल कैंप या रक्तदान शिविर आयोजित करते हैं बल्कि पहाड़ से पलायन रुके, इसके लिए वहां के युवाओं को स्वरोजगार की सीख भी देते हैं। यही तो है सच्चा राष्ट्रवाद और डा. नवानी हैं सच्चे देशभक्त। काश, हर सक्षम व्यक्ति यदि हाशिए पर खड़े व्यक्ति की मदद को हाथ बढ़ाए तो देश की तस्वीर और तकदीर बदल सकती है।
डा. जयंत नवानी की देशभक्ति और राष्ट्रवाद को सलाम।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]