वो सरकार, हाय सरकार, धिक्कार सरकार

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  • 91 साल के राज्य आंदोलनकारी को क्यों बैठना पड़ा आमरण अनशन पर?
  • राज्य में चोर-उचक्कों का बोलबाला, तबादले को उद्योग बना डाला

देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। कहा जा रहा है कि घर-घर तिरंगा लगाओ। लेकिन इस देश की आजादी दिलाने और उत्तराखंड राज्य गठन के लिए संघर्ष, त्याग और बलिदान देने वाले लोगों और उनके परिजनों के साथ क्या हो रहा है, इसका ताजा उदाहरण यह वीडियो देख लें। राज्य निर्माण आंदोलनकारी गिरधारी लाल 91 साल के हैं। उनको दो बार हार्ट अटैक आ चुका है। उनकी पत्नी भी हार्ट और शूगर पेंशैंट हैं। इसके बावजूद उनके बेटे देवेंद्र नैथानी का तबादला इसलिए नहीं किया जा रहा है कि न तो उनका कोई पैरोकार है और न वह रिश्वत देने को तैयार।
देवेंद्र नैथानी देहरादून से लगभग 395 किलोमीटर दूर उत्तरकाशी के सीमांत गांव राइंका सरनौल में भूगोल प्रवक्ता हैं। 2011 से वहां तैनात है। यह क्षेत्र अति दुर्गम है। नियमानुसार उसका तबादला बिना सिफारिश और बिना घूस के हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिछले एक साल से 91 वर्षीय राज्य आंदोलनकारी शिक्षा विभाग, नेताओं और मंत्रियों की चौखटों को खटखटा कर हार गये। कोई सुनवाई नहीं हुई। चार अगस्त को सीएम धामी से भी मिले। कुछ नहीं हुआ। मजबूरन आज विधानसभा गेट पर धरने पर बैठ गये। कुछ देर में एसडीएम पुलिस समेत आई और उन्हें आश्वासन दिया कि कल शिक्षा विभाग जाओ, काम हो जाएगा। देखें, कितना सुनते हैं शिक्षा विभाग वाले।
दरअसल, देवेंद्र नैथानी के साथ अति दुर्गम में कार्यरत अन्य शिक्षकों का तबादला हो चुका है। तबादलों में भ्रष्टाचार का खेल लगातार जारी है। शिक्षा विभाग में सबसे अधिक तबादला माफिया सक्रिय हैं। ऐसे में भला 91 वर्षीय राज्य आंदोलनकारी की कौन सुनेगा? पर सवाल यही है कि क्या राज्य निर्माण की लड़ाई इस लिए लड़ी गयी कि एक दिन इस राज्य पर चोर-उचक्कों और माफियाओं की तूती बोले। यदि 91 साल के बुजुर्ग के आंदोलनकारी की इस प्रदेश में नहीं सुनी जाती तो सरकार को धिक्कार है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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