- अधिकांश विवादित नौकरशाहों के मूल विभाग तो छेड़े ही नहीं
- पशुपालन, लोकनिर्माण, पर्यावरण, स्मार्टसिटी, चिकित्सा में बदलाव नहीं
प्रदेश की नौकरशाही में शासन ने कल बदलाव किए हैं। सरकार से विस्फोटक बदलाव की उम्मीद थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। दरअसल, नौकरशाही में बदलाव के लिए हिम्मत चाहिए और मौजूदा सरकार के पास अब न हिम्मत बची है और न वक्त। इसलिए जनता में महज यह संदेश दिया गया है कि बदलाव हुआ है। यदि नौकरशाही में बदलाव की सूची को गंभीरता से देखा जाएं तो पता चलता है कि अधिकांश बदलाव महज दिखावा भर हैं। उत्तराखंड परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक अभिषेक रुहेला को निगम को घाटे के लिए दोषी करार दिया गया और उन्हें ही प्रतीक्षारत रखा गया। निगम की 306 करोड़ की देनदारी है। कुंभ मेलाअधिकारी दीपक रावत कुंभ में पूरी तरह से फेल हुए और अब उनका हरिद्वार में कुछ काम नहीं था तो उन्हें पिटकुल निदेशक बना दिया गया है। उनकी राजनीतिक पहुंच से सब वाकिफ हैं।
पशुपालन विभाग में घोटाले की चर्चा दिल्ली तक है। भाजपा की वरिष्ठ नेता मेनका गांधी ने जनवरी में भेड और ऊन विकास विकास केंद्र में घोटाले का मुद्दा उठाया लेकिन अब तक जांच नहीं हुई। आस्टेªलिया से लाई गयी 400 मेरिनो भेड़ों को लेकर भी विवाद है। ये एक भेड़ ढाई लाख रुपये की है। इसके बावजूद मीनाक्षीसुंदरम से पशुपालन विभाग नहीं लिया गया। राज्य प्रदूषण नियंध्स बोर्ड में सुबुद्धि की दोबारा नियुक्ति विवादों में हैं। सुबुद्धि पहले भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में विवादों में रहे हैं लेकिन आनंदबर्द्धन से यह विभाग नहीं लिया गया।
पर्यटन के मोर्चे पर दिलीप जावलकर को भी हटाया जाना चाहिए था। लेकिन कोरोना के कारण उन्हें वाॅकओवर दिया समझो। डा. पंकज पांडे कोरोना की दूसरी लहर में बुरी तरह विफल हो गये लेकिन उनसे चिकित्सा नहीं लिया गया।
लोकनिर्माण विभाग विवादों में है और मुख्य सचिव रहे ओमप्रकाश के दाएं हाथ माने जाने वाले रमेश कुमार सुधांशू को भी नहीं छेड़ा गया। स्मार्ट सिटी है क्या? आम जनमानस को यह पता ही नहीं कि कहां क्या बनेगा और कब तक बनेगा? स्मार्ट सिटी के कार्य देख रहे त्रिवेंद्र चचा के लाडले आशीष श्रीवास्तव से भी यह प्रोजेक्ट नहीं लिया गया। हां, इसमें माना जा सकता है कि आशीष को वाकओवर इसलिए दिया गया होगा कि नये को समझने में अधिक वक्त लगेगा? एक समय था कि आशीष श्रीवास्तव के पास डीएम देहरादून, उपाध्यक्ष एमडीडीए और सीईओ स्मार्ट सिटी का चार्ज था। उस हिसाब से उन्हें हल्का किया गया है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]