- अंग्रेजों ने बनाया था चाय बागान, 1200 एकड़ में फैला बाग
- हरीश रावत सरकार रही थी नाकाम, अब नये सिरे से हो सकती है कोशिश
नेताओं का चाल, चरित्र और चेहरा सब संदिग्ध होता है। हरदा सरकार की नजर देहरादून के चाय बागान पर भी थी। स्मार्ट सिटी के नाम पर पहले 319 एकड़ अधिग्रहित करना था। विरोध के कारण और चुनाव नजदीक होने से उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। अब सत्ता बदल गयी है लेकिन नेताओं की चाल और चरित्र नहीं बदला। चाय बागान की बेशकीमती जमीन को लेकर एक बार फिर सुगबुगाहट है। इस जमीन पर सरकार और भूमाफिया की टेढ़ी नजर है। यानी देहरादून के आर्गनिक चाय बागान खतरे में है।
हाल में छह नंबर पुलिया के निकट स्थित शत्रु संपत्ति को बड़ी ही चालाकी से बेच दिया गया। कोई विरोध नहीं हुआ। आज आलम यह है कि विरोध के स्वर गुम हैं। कुछ हैं भी तो उनकी आवाज सत्ता के गलियारे तक नहीं पहुंचती। जनता के मन में सत्ता के भेड़ियों से कहीं ज्यादा डर मुसलमानों को बिठा दिया गया है। आज कुछ भी कर लो, और कह दो हिन्दुत्व को बचाने के लिए कर रहे हैं तो सब पाप मुक्त।
कोई माने या न माने, लेकिन सच यही है कि प्रदेश के 75 प्रतिशत विधायक और 95 प्रतिशत पार्षद जमीनों को खुर्द-बुर्द करने और प्रापर्टी डीलिंग के धंधे में है। देहरादून नगर निगम की लगभग 400 हेक्टयर सरकारी जमीन खुर्द-बुर्द हो चुकी है। एडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल और मैंने इस आधार पर आकलन किया तो पता चला कि यदि औसतन 30 हजार रुपये प्रति वर्ग गज की जमीन कब्जाई गयी तो इसका बाजार मूल्य लगभग 18 हजार करोड़ रुपये है। इस आधार पर देहरादून में आज भी प्रति दिन ढाई करोड़ रुपये की सरकारी जमीन खुर्द-बुर्द की जा रही है।
चाय बागान की जमीन का लैंड यूज्ड नहीं बदला जा सका, इसलिए यह पिछले 200 साल से सुरक्षित है। लेकिन तर्क दिया जा रहा है कि जब भाजपा ने महज एक दिन में अपने पार्टी कार्यालय के लिए सीएलयू को चेंज कर दिया तो चाय बागान का भी सीएलयू हो सकता है क्योंकि डबल इंजन सरकार है। ऐसे में चाय बागान पर जबरदस्त खतरा मंडरा रहा है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]