महज कुछ घंटों में दूध के झाग सा बैठ गया आंदोलनकारियों का अनशन

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  • मातृशक्ति को पेड़ों पर चढ़ा दिया और खुद सत्ता के चरणों में लोट गए
  • हद है कम से कम शहीदों की आत्माओं को यूं तो न दुख पहुंचाओ

देहरादून कचहरी परिसर स्थित शहीद स्थल पर कल देर रात तक जो नाटक हुआ, वह सोचनीय घटना है। पौड़ी और उत्तरकाशी से आई महिलाओं को पेड़ पर चढ़ा दिया गया। कुछ लोग जबरन अनशन पर बैठ गये। कुछ लोग दिन भर सत्ता के साथ लाइजनिंग करते रहे। दिन भर यह नाटक चलता रहा और रात लगभग 11 बजे इसका पटाक्षेप हो गया। अनशनकारियों ने जूस पी लिया और महिलाएं पेड़ों और छतों से नीचे उतर आई। आखिर ये महिलाएं पेड़ों पर चढ़ी क्यों और फिर उतरी क्यों? अनशनकारियों ने भूख हड़ताल महज ओएसडी के कहने पर तोड़ दी। क्या सीएम पुष्कर सिंह धामी से कोई ठोस या लिखित आश्वासन मिला। सीएम धामी की बाइट कहां है? या आश्वासन वाला पत्र कहां हैं? यदि है तो ठीक है यदि नहीं है तो इस तरह की हरकतें कर क्या साबित करना चाहते हो? इससे समस्त आंदोलनकारी और उससे भी कहीं अधिक शहीदों के परिजन दुखी हुए होंगे कि नाटक किसलिए? क्षैतिज आरक्षण, चिन्हीकरण के लिए? शहीद दिवस पर इन मांगों का अर्थ समझ से परे हैं।
आप किसे मूर्ख बना रहे हो? लोग सब समझते हैं। यदि आंदोलनकारियों में फूट नहीं होती, सबके निजी हित नहीं होते तो आज आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण भी होता, क्षैतिज आरक्षण भी मिलता और दावे के साथ कह सकता हूं कि शहीदों को न्याय भी मिल गया होता? हद है आखिर कब तक राजनीतिक षड्यंत्र के शिकार होते रहेंगे आंदोलनकारी? 27 साल में भी अक्ल नहीं आई। जो ठेकेदार थे वो हमारे राज्य के भाग्यविधाता बने हुए हैं। और आज हम उनके इशारों पर नाच रहे हैं?
जो कल सीएम दरबार में हाजिरी लगाने के लिए गये थे, उन आंदोलनकारियों को जवाब देना चाहिए कि वो रिटन में क्या लाए हैं? वो जो लोग भूख हड़ताल पर बैठे थे, जवाब दें कि ओएसडी के कहने पर ही जूस क्यों पी लिया? क्या इंसाफ मिल गया? क्या क्षैतिज आरक्षण मिल गया? मेरा मानना है कि जो पेड़ पर चढ़े और जो नियोन की शीशी लेकर गये थे, पुलिस को उन पर मुकदमा दर्ज करना चाहिए। आत्महत्या की धमकी भी अपराध है।
आज मुजफ्फरनगर कांड की बरसी पर मैं कुछ भी नहीं लिखना चाहता था। मन से दुखी था कि 27 साल बाद भी शहीदों को न्याय नहीं मिला। नेताओं को कुर्सी मिली, शोहरत मिली, दौलत मिली लेकिन शहीदों को इंसाफ नहीं मिला। दुख है कि हम आज भी कठपुतली बने हैं नेताओं की। वो नचा रहे हैं और नाच रहे हैं। आप लड़ते रहो, मरते रहो। जिस दिन आप मरोगे, उस दिन यदि कोई डांसर, नेता या कोई भी हस्ती आएगी तो अखबार में भी जगह नहीं मिलेगी। या संक्षिप्त खबर में निपटे मिलोगे। ऐसा काम न करो कि शहीदों की आत्मा दुखी हो जाएं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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