हंसुलि और दाथियों की बात न सुनना पड़ेगा महंगा
भू-कानून पर भाजपा और कांग्रेस की चुप्पी से युवाओं में आक्रोश
इन दिनों विधानसभा सत्र चल रहा है। मैं देख रहा था कि युवा और महिलाओं की मुट्ठियां तनीं हुई थीं। जब एक इंस्पेक्टर ने आगे बढ़ रहे युवा लुसुन टोडरिया को धक्का मारा तो उसकी भाव-भंगिमा बता रही थी कि पुलिस इस ज्वार-भाटे को अधिक समय तक नहीं रोक सकती है। युवा और महिलाएं व्यथित हैं, त्रस्त हैं और आक्रोशित भी। ऐसे में समाज के बीच चिन्गारी सुलग रही है। भू-कानून तत्कालीन बहाना हो सकता है इस ज्वाला को भड़कने के लिए।
देखो, भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रदेश की जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ करती हैं। सीएम धामी ने कहा कि भू-कानून लाएंगे। लेकिन कब? चार महीने बाद सरकार चली जाएगी। यदि धामी इस मुद्दे पर गंभीर होते तो सत्र में भी इस मुद्दे पर बात होती। कांग्रेस गंभीर होती तो चाहे शून्यकाल में ही सही लेकिन ये मुद्दा उठाती। दोनों दलों के नेताओं को पता है कि उनकी कमाई का मूलमंत्र जमीन है। यदि जमीन पर नेताओं की मनमानी नहीं हुई, जमीनों को खुर्द-बुर्द नहीं किया तो उनकी भ्रष्टाचार की गाड़ी कहां से चलेगी? भाजपा और कांग्रेस के 90 प्रतिशत नेता जमीनों के खेल में लिप्त हैं। ऐसे में उन्हें सख्त भू-कानून लाने की जरूरत क्यों आन पड़ी?
आज प्रदेश में बेरोजगारी का स्तर 22 प्रतिशत है। युवा बेरोजगार है और उसकी मां को चिन्ता है कि बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा? 20 साल बीत गये न प्रदेश में युवा नीति बनी, न रोजगार नीति और न महिला नीति। बस बनी है तो जमीनों और हमारे पहाड़ के संसाधनों को बेचने की नीति। प्रदेश के नीति-नियंताओं को समझना होगा कि कल जो युवाओं की मुट्ठियां तनीं हुई थी वो उनके लिए चेतावनी है कि इस प्रदेश में अब ये अनाचार और भ्रष्टाचार अधिक दिनों तक नहीं चलेगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]