ओ सरकारी नौकरों, तुम धरती के भगवान हो, फिर हड़ताल क्यों?

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image source: social media
  • कभी सोचा, देश ने तुम्हें इतना दिया, तुमने देश को क्या दिया
  • नेताओं की तरह भोथरे चेहरे और पेट कुआं हो गया तुम्हारा

साढ़े चार साल भाजपा सरकार ने प्रदेश में कुछ नहीं किया। अब अगले छह महीने कर्मचारी कुछ नहीं करने दे रहे। बताओ, प्रदेश का विकास कैसे होगा? आज के युग में जिसे सरकारी नौकरी मिल रही है वो धरती का भगवान हैं। उत्तराखंड में सरकारी नौकरी कर रहे तीन लाख भगवान हैं। यदि भगवान ही हड़ताल करेंगे तो आम जन का क्या होगा?
कोई ग्रेड पे के लिए, कोई प्रमोशन के लिए, कोई स्वार्थ के लिए और कोई दलों के बहकावे के लिए आंदोलन कर रहे हैं। चुनावी वेला है तो सभी ब्लैकमेलिंग कर रहे हैं। लेकिन जरा सोचो, जनता किसे ब्लैकमेल करें। जनता खरबूजा हो गयी है जिस पर कर्मचारी गिरे या नेता। कटना जनता को ही है। सरकारी कर्मचारियों के चेहरे नेताओं की तरह ही भोथरे और पेट कुंआ हो गया है जो भरता ही नहीं।
यदि सरकारी नौकर के औसत काम के घंटे गिन लिए जाएं तो नौकरशाहों से लेकर चपरासी तक 75 फीसदी कर्मचारी चार घंटे भी काम नहीं करते हैं। क्षमता का दस प्रतिशत भी नहीं देते हैं। इसके बावजूद बजट का 42 फीसदी भाग ये वेतन में खा जाते हैं। 90 प्रतिशत कर्मचारी बेईमान हैं। रिश्वत लेते हैं या कमीशन खाते हैं। अच्छा वेतन मिलता है, ऊपर की कमाई भी है और प्रापर्टी डीलिंग, जमीन कब्जाना, नेताओं की चरण वंदना करना या रैलियों के भीड़ इकट्ठी करने के काम से भी कमाई होती है।
पिछले 20 साल में सरकारी नौकरों की संपत्ति की जांच की जाए तो 90 प्रतिशत बेईमान निकलेंगे। चपरासी के पास भी कार मिलेगी। एक तो पहले ही काम नहीं करते, दूसरे हड़ताल। क्या अर्थ है इसका? कभी तुलना की है सेलाकुई, पलटन बाजार या हरिद्वार या रुद्रपुर के सिडकुल की फैक्ट्री या दुकानों में काम करने वाले कर्मचारियों की। 15 हजार में मैनेजर है और दस हजार में इंजीनियर। फिर भी घर चला रहे हैं। टैक्स दे रहे हैं ताकि तुम जैसे निकम्मों को वेतन मिल सके।
ओ सरकारी नौकरों, जरा विचार करो, देश ने तुम्हें इतना कुछ दिया है लेकिन तुमने देश और प्रदेश को क्या दिया? संभल जाओ, हड़ताल न करो। कुछ तो शर्म करो। मांगें मनवाने के दूसरे भी तरीके हैं। ब्लैकमेलिंग बंद करो।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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