…और ढह गया घाटी के बाहर का बरगद

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  • दून स्मृतियों में रहे, इतिहास न बने: उर्मिल
  • कहा, देहरादून मेरा मायका, यहीं से मिली ममता

कल देर शाम घर लौटा तो खबर मिली कि उर्मिल थपलियाल जी नहीं रहे। सहसा विश्वास नहीं हुआ। उनके मोबाइल पर फोन किया तो उनके दामाद ने इसकी पुष्टि कर दी। दिल में कुछ टूटने की आवाज हुई। सूझा नहीं कि क्या कहूं, किससे कहूं। कुछ लिखना चाहता था लेकिन शब्द नहीं सूझ रहे थे। जाना सबकी नीयति है लेकिन कुछ लोगों का जाना बहुत अखरता है। उर्मिल जी थे ही ऐसे कि उनके जाने से धरा पर अच्छे लोगों का शून्य और बड़ा हो गया।
बात इस साल जनवरी की है। नौटंकी को नया आयाम देने वाले प्रख्यात रंगकर्मी और पत्रकार उर्मिल थपलियाल देहरादून आये थे। मैं और जनकवि अतुल शर्मा और रमन जी उनसे मिलने वसंत विहार गये। चेहरे पर वही हंसी और आवाज में वही खनक जो आकाशवाणी में जन-जन को लुभा देती थी। सादगी और चेहरे पर गर्वीले ज्ञान की बहार सी थी। उम्र के इस पड़ाव में भी उनका जज्बा देखने लायक था। कह रहे थे कि लखनऊ लौटकर उनकी संस्था दर्पण के 50 साल पूरे होने पर नाटक का मंचन करना चाहते हैं।
उर्मिल को देहरादून से गहरा लगाव रहा है क्योंकि उंनकी परवरिश यहीं हुई। देहरादून की रामलीलाओं को याद कर उनके चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी थी कि उन्होंने एक साथ तीन रामलीलाओं में सीता का पाठ किया। हंसते हुए बताते कि 11 बजे आढ़त बाजार की रामलीला में सीता का रोल करता। इसके बाद तांगे से हाथीबड़कला की रामलीला में अभिनय और फिर गढ़वाल परिषद की रामलीला में। दून की बातें करते समय वह भावुक हो गये थे। कहा, मैं घाटी के बाहर का वृक्ष हूं। दून मेरा मायका है। यहीं से मुझे दुलार और ममता मिली। दून अब तेजी से बदल रहा है। यहां अनियोजित विकास हो रहा है। मैं चाहता हूं कि दून स्मृतियों में रहे, इतिहास न बनें। इतिहास संग्रहालयों में रखने की वस्तु है जबकि स्मृतियां हृदय में रहती हैं।
गौरतलब है कि उर्मिल थपलियाल ने नौटंकी को नया आयाम दिया। कानपुर की गुलाबबाई और हाथरस के गिरिराज की नौटंकी यूपी में खूब प्रचलित थी। रात भर नौटंकी चलती थी। उर्मिल ने आकाशवाणी के हवामहल कार्यक्रम में नौटंकी को नये रूप में दिया। रात भर की नौटंकी को वह अपने अद्वितीय शब्द कौशल से एक या दो मिनट में समेट देते थे यानी गागर में सागर भर देते थे। उन्हें संगीत नाटक एकादमी पुरस्कार, यश भारती पुस्कार समेत अनेकों सम्मान मिले।
वह चाहते थे कि उत्तराखंड सरकार एक ड्रामा स्कूल खोले। उनके अनुसार यहां प्रतिभा है लेकिन उन्हें तराशने के लिए मंच नहीं मिलता। संभवतः अब उत्तराखंड सरकार इस ओर ध्यान दे तो यह सरकार की ओर से उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हम लोग उस दिन उर्मिल जी के साथ कई घंटे रहे। वो हमारे दिल में पहले से थे, और हमेशा रहेंगे। बस, अब स्मृति शेष है, यह प्रदेश ही नहीं देश के लिए अपूरणीय क्षति है।
भावभीनी श्रद्धांजलि।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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