आओ स्कूल चले हम, जान हथेली पर लेकर

692
  • देहरादून से महज 20 किमी की दूरी का मंजर
  • नीचे सौंग नदी और ऊपर ट्राली पर बच्चे और मास्टर

ये जो फोटो में ट्राली पर सवार हैं, ये हैं टिहरी के रगड़गांव राजकीय इंटर कालेज के अध्यापक देवानंद देवली। यह स्कूल मालदेवता के निकट है। गुरुजी, शौकिया तौर पर ट्राली में नहीं बैठे हैं, बल्कि मजबूरी में बैठे हैं। दरअसल, चिसोल्डी गांव के छात्र वर्ष भर रोजाना इसी तरह से ट्राली खींचकर सौंग नदी पार करते हैं। आश्चर्य तब होता है कि जब यह जगह अस्थायी राजधानी देहरादून, जहां से विकास की नदियां बहती हैं, वहां से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विडम्बना है कि विकास की नदियों का स्रोत देहरादून इस गांव के स्कूल तक पिछले 20 साल में सड़क तक नहीं ले जा सका। यानी पिछले 20 साल में यदि सरकारें हर साल एक किलोमीटर सड़क भी बनाती तो आज स्कूल तक सड़क पहुंच जाती।
ट्राली को खींचकर गांव के बच्चे रोज जान हथेली पर रखकर नदी-आरपार करते हैं। बच्चों के नदी में गिरने का खतरा लगातार बना रहता है। बरसात के मौसम में सौंग नदी उफान पर आ जाती है तो बच्चों की जान का खतरा और बढ़ जाता है।
स्कूल में लगभग 268 बच्चे पढ़ते हैं लेकिन आज तक स्कूल तक न तो सड़क पहुंची और न ही पुल बना। सड़क न बनें इसलिए सरकार ने इस स्कूल को दुर्गम घोषित कर दिया। इस स्कूल में देहरादून और टिहरी जिले के चार ब्लाकों के 268 छात्र पढ़ते हैं। अन्य छात्रों को भी नदी के साथ बनी पगडंडी पर रोजाना तीन-चार किलोमीटर चलकर स्कूल पहुंचना पड़ता है। यहां कई बार हादसे हो चुके हैं। लेकिन जब मजबूरी ही नीयति बन जाएं और सरकारें गूंगी-बहरीं हों तो शिकवा किससे करें?
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

सुन लो सरकार, कर्नल कोठियाल का आफर मान लो

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here