- लो जी, अपने नाम का पत्थर लगा कर बना दिया शहीद स्मारक
- 1962 के युद्ध के महानायक के गांव में शहीद की मूर्ति भी नहीं लगी
- बदहाल है पौड़ी स्थित जसवंत का बाडियूं गांव
यदि भाजपा वास्तव में सैन्य धाम बनाना चाहती है तो 1962 भारत-चीन युद्ध के हीरो जसंवत सिंह के पौड़ी स्थित गांव बाडयूं से बेहतर कौन सी जगह हो सकती है? अमर शहीद जसवंत सिंह का गांव मौजूदा समय में बदहाल है। तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र रावत ने गांव में शहीद स्मारक बनाने की बात कही थी। न स्मारक बना और न ही गांव में खेल मैदान। इस घोषणा को एक साल हो गया है। गांव में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के नाम का पत्थर लगा है। बस यही स्मारक है।
दरअसल, भाजपा और कांग्रेस ने देश के वीर सपूतों के नाम पर वोटों की फसल काटी है। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली आज भी गढ़वाल राइफल्स की बुक में अपराधी हैं और जसवंत सिंह के नाम का उपयोग भी वोटों के लिए हो रहा है। तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जसवंत सिंह के नाम का मेला राजकीय करने की घोषणा की और गांव में स्मारक बनाने की। लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस बीच अब पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी सोशल मीडिया में जसवंतगढ़ के नाम पर जिला बनाने की मुहिम को समर्थन दिया है। साफ है कि होना कुछ नहीं है दोनो दल जनभावना को उकसा कर वोट बटोरने की फिराक में हैं।
गौरतलब है कि राइफ़ल मैन जसवंत सिंह भारतीय सेना के सिपाही थे, जो 1962 में नूरारंग की लड़ाई में असाधारण वीरता दिखाते हुए शहीद हो गये थे। उन्होंने चीन के 300 सैनिकों को मार डाला था और चीनी सेना को 72 घंटे तक रोके रखा। उन्हें उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। अरुणाचल प्रदेश में आज भी जसवंत सिंह का मंदिर है। और कहा जाता है कि यह वीर सपूत आज भी वहां की रक्षा करता है। राइफलमैन जसवंत सिंह को शहीद होने के बाद भी निरंतर प्रमोशन और अन्य सरकारी सुविधाएं मिलती रही। वो 2018 में मेजर जनरल के पद से रिटायर हुए।
भारत मां के इस वीर सपूत को उनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]