– सुदूर गांवों तक विकास पहुंचाने का संकल्प
– पूर्व सैनिक बनेंगे ताकत और बेरोजगार बनेंगे समर्थक
दोस्तो, कोविड कर्फ्यू के खाली समय को कैसे उपयोग करूं, मंथन करना शुरू किया कि जब रोज सोशल मीडिया पर गालियां खानी हैं और हमेशा मानहानि के केस की तलवार लटकी ही रहनी है तो क्यों न एक राजनीतिक दल बना दिया जाएं। वैसे भी हमारे प्रदेश में लोग कम और क्षेत्रीय दल अधिक हैं, तो एक मैं भी बना लूं, तो क्या बुरा है। बस क्या था, मंथन करने के बाद विचार पर अमल शुरू किया। एक पूर्व आईएएस अधिकारी और एक पूर्व सैनिक जो कि मेरे रिश्तेदार हैं और उन्हें दल बनाने, बदलने और पार्टी से बाहर निकाले जाने का 25-30 साल का अनुभव है, उनसे बात करने की सोची और तय कर लिया कि नया राजनीतिक दल बनाया जाएगा। नाम पर विचार चल रहा है।
इससे पहले तो कोरोना के मरीजों की संख्या, दिनों दिन बढ़ रहे मौत के आंकड़े और कोरोना के भय से नींद ही नहीं आती थी। रही-सही कसर जानने वाले फोन कर डरा देते थे कि फलां आदमी तो आज निकल लिया। अपने निकटस्थों, गांववालों और पड़ोसियों के असमय निधन का डर सताता था। कई रातों को जागने के बाद नींद की गोली का सहारा लेना पड़ा। लेकिन जिस दिन से क्षेत्रीय दल बनाने की सोची, भगवान कसम, रातों को नींद ठीक से आने लगी। सपनों में भी देहरादून की विधानसभा, बीजापुर गेस्ट हाउस और सीएम आवास, गैरसैंण दिखाई देने लगे। उत्तराखंड में जितने भी क्षेत्रीय दल हैं वो दल बनाते ही सीएम बनने के सपने देखने लगते हैं। सो, मैं भी देखने लगा।
कैबिनेट में कौन-कौन होगा, सीएम सचिवालय में कौन अधिकारी बैठेंगे। भ्रष्ट नौकरशाहों और अफसरों की सेवा के लिए ‘आन मिलो सजना‘ की तर्ज पर चमड़े का पट्टा, नेताओं की कमीशनखोरी रोकने के लिए उपाय और आपदा से निपटने के लिए क्विक रिस्पांस फोर्स, एडवाइजरों से दूरी और सीएम आपके द्वार समेत कई कल्याणकारी योजनाओं पर सोचना शुरू कर दिया। वनों की आग, महिला नीति, स्वास्थ्य के लिए अल्पकालीन और दीर्घकालीन नीति। ब्लाक स्तर पर 10 बेड का अस्पताल, रोटेशन आधारित डाक्टरों की तैनाती, हर जिले में पैरा मेडिकल कालेज, ब्लाक स्तर पर पांच आवासीय स्कूल, बेरोजगारों को आपदा काल में 6 माह की नौकरी मसलन उनका उपयोग वनाग्नि को रोकने, भूकंप, भूस्खलन आदि आपदा में लोगों की मदद करने और जनजागरूकता कार्यक्रम में तैनाती देने का फैसला कर लिया।
पहाड़ों में पलायन रोकने के लिए चलो गांव की ओर, पहाड़ के 50 गांवों के लिए एक छोटा कस्बा बसाने के लिए विस्थापन नीति, जल प्रबंधन के लिए रन आफ रिवर नीति, पंचायत अधिनियम 1992 को पूर्णतः लागू करने और चारधाम के अलावा योगा और आध्यात्मिक पर्यटन समेत दर्जनों योजनाओं और उनको धरातल पर उतारने के लिए ब्लू प्रिंट भी तैयार कर लिया। महिलाओं के उत्थान के लिए एक और गौरा आदि कार्यक्रम तय कर लिए। यह भी तय किया कि कैबिनेट मंत्रियों और पार्टी के विधायकों में से कोई भी वेतन, भत्ता नहीं लेगा और विकास कार्यों में 30 प्रतिशत कमीशनखोरी तो बिल्कुल नहीं होगी।
सब ठीक-ठाक चल रहा था। इस बीच कोरोना के केस कम होने लगे, मौत के आंकड़े भी कम हुए तो डर भी कम होने लगा। चाहे वो सरकारी आंकड़ेबाजी का खेल हो, जो भी हो, मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने के बाद फिर जमीन नजर आने लगी। कमीशन नहीं मिलेगा तो विधायक विद्रोह कर देंगे, अपोजिशन पार्टी से मिल जाएंगे। हॉर्स ट्रेडिंग होगी, जब वेतन-भत्ते नहीं मिलेंगे तो कैबिनेट मंत्रियों को अपने प्लाट और कोठियां-प्रतिष्ठान बेचने पड़ेंगे। जिन नौकरशाहों की ठुकाई होगी वो हर हालत में ऐसे सीएम को हटाना चाहेंगे। दुनिया की तमाम बुरी शक्तियां मेरे खिलाफ हो जाएंगी। एक दिन ऐसा आएगा कि मुझे कुर्सी से हटा दिया जाएगा। मैं फिर विपक्षी नेता के तौर पर सरकार का विरोध करूंगा, धरना दूंगा, भूख हड़ताल करूंगा।
दोस्तों, जब मुझे ऐसे ही धरना प्रदर्शन और विरोध करना है तो क्यों इतना लंबा संघर्ष करूं? सत्ता की जनविरोधी नीतियों का विरोध तो मैं आज भी कर ही रहा हूं। इसलिए बहुत सोच-समझकर फैसला किया कि मुझे कोई दल-वल नहीं बनाना। मैं जैसा हूं-वैसा ही ठीक हूं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]