…और खामोश हो गयी जनपक्षधरता की एक कलम

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  • पहाड़ की मुखर आवाज थे संपादक दिनेश जुयाल
  • आज के दौर में ऐसे संपादक और पत्रकार दुर्लभ हैं

मई माह की बात है। चारधाम यात्रा शुरू हुई और मनमीत की एक रिपोर्ट कि यात्रा में 10 लोगों की मौत हो गई। सरकार ने उस पर केस कर दिया। ये सरकारी धमकी थी कि यदि यात्रा अव्यवस्थाओं पर कुछ लिखा तो केस झेलो। चाहे वो सच ही क्यों न हो। तब वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल ने सोशल मीडिया पर इसका खुला विरोध किया। उन्होंने पत्रकार पर लगाई गई धाराओं पर भी सवाल उठाए और सरकार की मंशा पर भी। पत्रकार गजेंद्र रावत की सोने के पीतल में बदलने की खबर पर केस की बात भी उठाई।
पिछले साल 24 दिसंबर की मूल-निवास भूकानून वाली स्वाभिमान रैली पर भी वरिष्ठ पत्रकार जुयाल की कलम खूब चली। उन्होंने मूल निवास की पुरजोर वकालत की। जोशीमठ धंसाव और हिमालय में हो रहे विस्फोट पर वो अक्सर चिंतित रहते थे। उन्होंने यूट्यूब पर भी स्पेशल एपीसोड दिखा यह बताने की कोशिश की कि प्रकृति के साथ अधिक मानवीय छेड़छाड़ ठीक नहीं। ऐतिहासिक रैणी गांव को बचाने और तोता घाटी के मौत की घाटी बनने की कहानी उन्होंने यूटयूब पर भी दिखाई।
यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि दिनेश जुयाल अमर उजाला और हिन्दुस्तान के संपादक रहे। वह चाहते तो कहीं सरकार में ‘एडजस्ट‘ हो जाते, पर नहीं हुए। पत्रकारिता के विद्यार्थियों को पढ़ाते रहे, हम जैसों को सिखाते रहे। उनकी कलम खूब चली। जमकर चली और झुकी नहीं।
डेढ़ माह से ब्लड कैंसर से पीड़ित दिनेश जुयाल का कल रात इंद्रेश अस्पताल में निधन हो गया। उनकी कलम खामोश हो गई, लेकिन उनकी जनपक्षधरता की बात उनके पत्रकारिता के अनेक शिष्यों और पत्रकारों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रहेगी। वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल को विनम्र श्रद्धांजलि।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)

#Dinesh_Chandra_Juyal

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