- प्रमुख अखबारों के रिपोर्टरों को निगम से मिलता है लिफाफा
- मेन खबर छापी नहीं, मेयर का खंडन छाप दिया
देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा पर पद के दुरुपयोग से करोड़ों की प्रापर्टी बनाने के आरोप लगे। पुख्ता सबूत थे। इसके बावजूद किसी भी प्रमुख अखबार ने यह खबर प्रकाशित नहीं की। जबकि जब गामा ने प्रेस कांफ्रेंस की तो सभी ने प्रकाशित कर दी। मजेदार बात यह है कि प्रमुख अखबारों के रिपोर्टरों ने प्रेस काफ्रेंस में एक भी सवाल नहीं पूछा। मेयर यह कहकर कि पान बेचा, चाउमिन का खोखा लगा और ठेकेदारी की, तो कमा लिया और हो गयी कांफ्रेंस।
अब सूत्रों से पता चल रहा है कि निगम से इन रिपोर्टरों को उनके परिजनों के नाम से 2018 से हर महीने 15 हजार रुपये जाते हैं। आरोप है कि निगम की आउटसोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से इनको यह रकम अदा की जाती है। आरोप है कि ये कहने के लिए निगम कर्मचारी हैं, लेकिन वहां आते भी नहीं।
मैंने ऐसे ही एक दैनिक अखबार के पत्रकार की पत्नी वंदना से फोन पर बातचीत की थी। यह बातचीत मैंने सोशल मीडिया पर भी डाली थी। एक पत्रकार तो अपनी भतीजी के नाम से रिश्वत ले रहा है। यह भतीजी कुमाऊं विश्वविद्यालय से एमए बीएड है। अब पता चला रहा है कि लगभग तीन दर्जन से अधिक पत्रकारों को निगम से इसी तरह से भुगतान हो रहा है। तो बताओ, निगम में होने वाली अनियमितताओं के खिलाफ कौन आवाज उठाएगा? बिके हुए पत्रकार और उनके दब्बू संपादक? कतई नहीं।
ये जो लिस्ट है, इसमें तीन बड़े अखबारों के पत्रकारों के परिजनों को निगम से पैसे मिलते हैं। दो बड़े अखबारों का कहना है कि इनको निकाल दिया गया है लेकिन पैसा तो ये पत्रकार 2018 से ले रहे हैं। ये पत्रकार आज भी अपने रिश्तेदारों के नाम से वहां से भुतहा कर्मचारी के तौर पर वेतन ले रहे हैं। यानी अखबार में काम करते हुए इन्होंने बेईमानी की। इनसे वसूली होनी चाहिए। इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]