तो मेयर गामा मामले में मैनेज हो गये बड़े अखबार व चैनल

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  • मेनस्ट्रीम मीडिया को बाहुबली अतीक के मूत में अधिक इंटरेस्ट
  • प्रदेश के लोगो, अखबार पढ़ने बंद करो, न्यूज चैनल मत देखो

सोमवार सुबह सो ही रहा था कि एडवोकेट विकेश नेगी का फोन आया कि भाई साहब, किसी भी प्रमुख अखबार ने देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा की अथाह संपत्ति की खबर नहीं छापी। मैं बोला, निराशा की बात नहीं है। आपने अपना काम किया। किसी भी प्रमुख अखबार ने यह खबर नहीं छापी न किसी चैनल ने दिखाई। मैं जानता था कि छापते भी कैसे? मैनेज हो गये होंगे। यह पहली बार नहीं हुआ। अक्सर ऐसे ही हो रहा है। दैनिक अखबार अब उठावनी, राशिफल के लिए ही पढ़े जाते हैं और सरकारी भोंपू बनकर रह गये हैं।
मेयर गामा की बात कैसे छापेंगे? पांच महीने पहले मैंने नगर निगम देहरादून में वर्ष 2018 से हर महीने 15 हजार रुपये अपनी पत्नी के नाम से रिश्वत ले रहे रिपोर्टर के बारे में पटेल नगर के एक प्रतिष्ठित दैनिक अखबार के संपादक को फोन कर कहा कि संपादक महोदय, आपका रिपोर्टर निगम से रिश्वत ले रहा है। संपादक ने मुझे कहा कि हम कार्रवाई कर रहे हैं। घंटा कार्रवाई की। संपादक अगले एक-दो महीने में रिटायर हो जाएगा। वह अपनी नौकरी बचा रहा है क्योंकि रिश्वत लेने वाला रिपोर्टर मैनेजर का आदमी है। लाला के अखबार में संपादक की औकात कुछ भी नहीं। मैनेजर ही सबकुछ होता है।
मैं बता दूं कि लगभग हर प्रमुख अखबार और चैनल के कुछ रिपोटर्रों का महीना बंधा हुआ है। इन अखबारों में 90 प्रतिशत पत्रकार बहुत ईमानदारी से काम करते हैं, लेकिन संपादकों के दब्बूपन और स्वार्थ के कारण और दलाल पत्रकारों की वजह से इन मेहनतकश पत्रकारों की भी फजीहत होती है।
ठीक है दब्बू और मैनेज्ड संपादको और दलाल पत्रकारो, तुम दिखाओ कि अतीक ने कितनी देर और कितनी तेजी से मूता। हो सके तो उसकी धार से हुए गड्ढे को इंचटेप से नापो और सरकार से ईनाम पाओ। मानो न मानो, जब मैं नवभारत टाइम्स दिल्ली में था। तो मेरे नामी संपादक मधुसूदन आनंद ने बहुत कहा था कि प्रिंट मीडिया मर रहा है और 2030 के बाद लोग अखबार पढ़ना छोड़ देंगे।
मेयर गामा मामले में छोटे और मझोले अखबार और सोशल मीडिया ने इन सब नामी पत्रकारों को धो डाला। शाबाश, सोशल मीडिया के पत्रकारो, सोशल मीडिया जिंदाबाद।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

ग्रामीण पत्रकारिता की पहाड़ सी चुनौतियां

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