- नफरत लाख फैलाओ, लेकिन कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
रेहना सिद्दकी 23-24 साल की लड़की है। आज सुबह उसका फोन आया कि सर, जोशीमठ की आपदा के लिए कुछ मदद जुटानी है तो आप जरूरतमंद लोगों के बैंक डिटेल या जरूरतों के बारे में बता दीजिए। मैंने उसे कहा, अभी रुको। अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। रेहना मान गयी। लेकिन इसमें जो सोचने की बात है कि रेहना का धर्म उसकी मानवता के आड़े नहीं आ रहा है। वह जोशीमठ में उजड़ रहे परिवारों की व्यथा को समझ रही है। यह किसी धर्म की बात नहीं, संवेदना की, मानवता की और दिलों की बात है। यही बात है कि जो नफरत की फसल बोने वाले तमाम हथकंड़ों पर भारी पड़ती है। यह भारत है और यूं ही नहीं कहते, कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
ऐसा पहली बार नहीं है कि जब रेहना ऐसा करने की सोच रही है। वह कोरोना काल में और उसके बाद भी लगातार गरीबों, जरूरतमंदों की मदद करने के लिए काम करती है। उसे विकासनगर और हरबर्टपुर के आसपास रहने वाली मलिन बस्तियों, झोपड़ियों और गूजर समाज के बच्चे दूर से ही पहचान जाते हैं। वह इन गरीब बच्चों की जरूरतों की बात सोशल प्लेटफार्म पर करती है और फिर साधन जुटाती है। वह सामाजिक मुद्दों पर बेहद संवेदनशील है। अंकिता हत्याकांड में जस्टिस फॉर अंकिता मुहिम में भी सक्रिय रही है।
जोशीमठ के हिन्दू परिवारों के लिए इस लड़की के दिल में जो संवेदना है, उसके लिए उसे सलाम।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
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