संघर्ष की भट्टी में तपकर कुंदन बने जनरल प्रधान

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  • जनरल प्रधान ने पेश की देशसेवा की अनूठी मिसाल
  • सिपाही से हुए भर्ती, चार बार जेएंडके में की कमांड

यदि हौसला हो, दिल में कुछ कर गुजरने की चाहत और अथक मेहनत करने की शक्ति तो फिर इंसान के लिए कोई भी काम अंसभव नहीं है। ऐसा ही कुछ साबित किया है लेफ्टि. जनरल (रि.) राम सिंह प्रधान ने। जनरल प्रधान का जीवन घोर आर्थिक संकट में बीता। पिता नहीं थे और मां किसी तरह से उनकी और उनकी गूंगी बहन की परवरिश कर रही थी। रामू आईएमए के निकट रहते थे तो जैंटलमैन कैडट को देख उनका सैन्य अफसर बनने का मन था। लेकिन घर की माली हालात दिनो दिन खराब हो रहे थे। मां की मेहनत का एहसास रामू को भी था। तो वह बच्चा जल्द ही बड़ा हो गया। परिवार की माली हालत सुधारने के लिए 17 साल की छोटी सी उम्र में सेना के मेडिकल कोर में नर्सिंग असिस्टेंट के तौर पर भर्ती हो गया। तीन साल की कठिन मेहनत की और एसएसबी दिया और ओटीए चेन्नई से 1973 में पासआउट होकर आसाम राइफल्स में पोस्टिंग मिल गयी।
यह कहानी जनरल प्रधान ने आज सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल के बच्चों को सुनाई। वह स्कूल के अलंकरण समारोह में मुख्य अतिथि थे। इस मौके पर उन्होंने बच्चों को कई प्रेरक प्रसंग भी सुनाए। यह बता दूं कि जनरल प्रधान उन चुनिंदा अफसरों में रहे हैं जिन्हें वन पैरा कमांडो में चुना गया था। इसके बाद वह उसी आईएमए में इंस्ट्रक्टर बनकर आए, जिसकी दीवारों के पार देख कर सैन्य अफसर बनने के सपने देखा करते थे।
जनरल प्रधान मुझे गर्व से बताते हैं कि चार बार जेएडंके की कमांड की। घुसपैठियो को रोकने के लिए कई बार आतंकवादियों के साथ आमने-सामने की लड़ाई भी हुई। वह हंसते हुए कहते हैं कि 1994 की बात है। उस दौरान वह ले. कर्नल थे और सेनाध्यक्ष बीसी जोशी थे। पाकिस्तान से घुसपैठ लगातार हो रही थी तो उसे रोकने के लिए राष्ट्रीय राइफल्स कमांडो बटालियन तैयार करनी थी। जनरल जोशी ने कमांडो बटालियन गठित करने की जिम्मेदारी उन्हें दी। इसके बाद उन्होंने 31 आरआर कमांडो बटालियन का गठन किया।
एवीएसएम, एसएम और वीएसएम विजेता जनरल प्रधान मध्य भारत के जीओसी भी रहे। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि जनरल प्रधान देश के उन चुनिंदा अफसरों में से हैं जो कि सिपाही से इतने बड़े पद पर पहुंचे। जनरल प्रधान रिटायर होने के बाद अब सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों से जुड़े हैं और विभिन्न मंचों पर युवा पीढ़ी को देशभक्ति के लिए प्रेरित करते हैं। सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल में भी उन्होंने बेहतरीन मोटिवेशनल स्पीच दी। ऐसे देशभक्त सैन्य अफसर को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सैल्यूट तो बनता ही है। जय हिन्द, जय उत्तराखंड।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

जाते-जाते झूठ बोल गये राजू

 

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